सनातन धर्म हजारों साल पुराना और विश्व का पहला ज्ञात और स्पष्ट धर्म है । सनातन धर्म मे केवल मानवों, देवताओं, दैत्यों, नागों और कई अन्य योनियों और प्राणियों का वर्णन नहीं है बल्कि इस धर्म में समस्त ब्रम्हांड के चर और अचर सभी जीव जंतुओं का कोई न कोई वर्णन अवश्य है
सनातन धर्म के पवित्र प्राणी
वैसे सनातन धर्म में वर्णित सभी देवी देवताओं के वाहनों के रुप में कोई न कोई पशु या पक्षी दिखाए गए हैं। शिव का वाहन बैल है , तो विष्णु गरुड़ की सवारी करते हैं। दुर्गा सिंह की सवारी करती हैं तो लक्ष्मी का वाहन उल्लू है। गणेश चूहे की सवारी करते हैं तो कार्तिकेय का वाहन मयूर है। इंद्र ऐरावत नामक हाथी पर चढ़ कर असुरों का संहार करते हैं तो भैरव का वाहन कुत्ता है । यमराज भैंसे पर सवार दिखाए गए हैं तो शनि देव का वाहन कौवा है।
वेद, पुराणों और महाकाव्यो में वर्णित प्राणी
वेदों में मुख्य रुप में अश्व और गाय की महिमा गाई गई है, लेकिन इसके साथ साथ कई अन्य पशुओं खासकर कुत्तों की माता सरामा और मयूर और सांपों का भी वर्णन है ऋग्वेद में मयूर के नृत्य का वर्णन है और साथ में यह भी कहा गया है कि मयूर सांपों को मार कर सांपों के विष से मानवों की रक्षा करती है।
यजुर्वेद में तोता और मैना की विशेष रुप से प्रशंसा यह कह कर की गई है कि इनमें मनुष्यों की बोली की नकल करने की प्रतिभा होती है। यजुर्वेद में कबूतर को कामवासना जाग्रत करने वाला पक्षी कहा गया है तो कोयल की मधुर वाणी का भी वर्णन है ।श्येन अर्थात बाज पक्षी को मनोजवः अर्थात मन की गति से उड़ने वाला पक्षी कहा गया है।
ऋग्वेद में पशुओं की जिक्र
- पशुओं में अश्व को लेकर ऋग्वेद मे अनेक ऋचाएं हैं । ऋग्वेद में जहां दध्रिका अश्व को सभी अश्वों का पूर्वज बताया गया है तो पुराणों समुद्र मंथन से उच्चश्रैवाः नामक दिव्य अश्व के निकलने का वर्णन है।
- हाथी के लिए अर्थववेद में छह मंत्र दिए गए हैं। हाथी और हथिनी के एक दूसरे से कदम मिला कर चलने की विशेष प्रशंसा की गई है। बारहसिंगे का वर्णन करते हुए वेदों में कहा गया है कि इसके सींग में वंशानुगत बीमारियों को दूर करने का गुण पाया जाता है।
- ऋग्वेद में दान दिये जाने वाले पशुओं में ऊंट का नाम भी शामिल है जबकि चूहे के बिल बनाने की योग्यता की तारीफ की गई है। अर्थववेद में नेवला, सांप, शूकर, गरुड़ और गाय की तारीफ करते हुए कहा गया है कि ये अपने रोगों को खुद ही ठीक कर लेने की योग्यता से परिपूर्ण हैं।
वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में कई ऐसे प्राणियों का भी जिक्र आता है जो अब संसार से विलुप्त हो चुके हैं। इन प्राणियों में शरभ, गंदभेरुंड और गरुड़ प्रमुख हैं।
गरुड़ पक्षी अब नहीं दिखते
गरुड़ पक्षी आज के चील पक्षी के जैसा दिखता था परंतु आकार में वह चील से बड़ा होता था। गरुड़ की उत्पत्ति कश्यप की पत्नी विनता के गर्भ से हुई थी। गरुड़ ने अपनी माता की मुक्ति के लिए अपने सौतेले भाई नागों से शत्रुता की थी। बाद में गरुड़ को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त हो गई और वह विष्णु का वाहन बन गए । आज गरुड़ पक्षी विलुप्त हो चुके हैं और ऐसा माना जाता है कि झारखंड राज्य के नेतरहाट इलाके में कभी-कभी गरुड़ पक्षी दिख हैं।
पशु और पक्षी के मेल से बना शरभ
- रामायण और महाभारत दोनों ही काव्यों में शरभ नामक एक प्राणी का वर्णन मिलता है जिसे सिंह से भी ज्यादा बलशाली और खतरनाक माना गया है । वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के लिए शरभ उपाधि का उल्लेख मिलता है। हालांकि श्रीराम के वनवास के दौरान कहीं भी उनके और शरभ के आमाना सामना होने की कथा नहीं मिलती है।
- शरभ एक आठ पैरों वाला प्राणी था जिसके शरीर के उपरी भाग पर पक्षियों की तरह पंख होते थे।इसके दो सिर भी थे। यह क्रौंच और गंधमादन पर्वत के इलाके में पाया जाता था । यह एक बार में किसी भी पर्वत और घाटी को छलांग लगाकर पार कर सकता था। यह मृग जाति का था और इससे शेर और हाथी भी भयभीत होते थे।
- महाभारत के वन पर्व की एक कथा में एक मुनि के आशीर्वाद से एक कुत्ते के द्वारा शरभ बनने की कथा आती है। शैव मत की कथाओ में जब विष्णु नरसिंह का अवतार लेते हैं और हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद क्रोधवश संसार का संहार करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो शिव शरभ का रुप लेकर विष्णु से युद्ध करते हैं।
- शैव कथाओं के अनुसार शिव और विष्णु अवतार नरसिंह के बीच इस युद्ध में शरभेश्वर शिव विष्णु स्वरुप नरसिंह को पराजित कर उनका क्रोध खत्म कर देते हैं। भगवान शिव जिस व्याघ्र चर्म पर बैठते हैं वो दरअसल नरसिंह भगवान के शरीर की खाल ही है।
- जातक कथाओं में भगवान बुद्ध को भी उनके एक पूर्वजन्म में शरभ के रुप में दिखाया गया है। दक्षिण भारत की कथाओं में शरभ का विशेष वर्णन है।
कर्नाटक की राज्य सरकार के अनेक विभागों मे अभी भी शरभ की तस्वीर को राजकीय चिन्ह के रुप में इस्तेमाल किया जाता है ।
विलुप्त प्राणी गंदभेरुंड
- शरभ की तरह ही एक और प्राणी है जो एक शक्तिशाली पक्षी है। इस प्राणी का नाम है गंदभेरुंड या भेरुंड। यह प्राणी अब संसार से विलुप्त हो चुका है । इस पक्षी के दो सिर हैं और मयूर की तरह लंबे पंख हैं। इसे विभिन्न मूर्तियों में अपनी चोंच में हाथी को लिये उड़ते दिखाया गया है। इस पक्षी की मूर्ति शिमोगा जिले के रामेश्वर मंदिर के शीर्ष पर लगाई गई है। विजयनगर साम्राज्य , मैसूर के राजाओं के राजचिन्ह और मुद्राओं में इस पक्षी को अंकित किया गया है।
- इस पक्षी को लेकर दक्षिण भारत के अनेक ग्रंथों में कथाएं हैं। एक कथा यह है कि जब हिरण्यकश्यप का वध भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह ने कर दिया तो इसके बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ ।
- भगवान नरसिंह अपने क्रोध में इतने बेकाबू हो गए कि वो संसार का संहार करने लगे। उन्हें रोकने के लिए भगवान शिव ने शरभ के रुप में अवतार लिया । भगवान नरसिंह और शरभेश्वर शिव के बीच महायुद्ध शुरु हो गया । भगवान नरसिंह ने इसके बाद अपना स्वरुप बदल लिया और वो गंदभेरुंड पक्षी के रुप में परिवर्तित हो गए।इसके बाद यह युद्ध गंदभेरुंड और शरभ के बीच होने लगा ।
- शैव मतों के अनुसार इस युद्ध में गंदभेरुंड के रुप में भगवान नरसिंह की पराजय हुई और शरभेश्वर शिव विजयी हुए। लेकिन वैष्णव मतों के अनुसार विष्णु स्वरुप गंदभेरुंड ने शरभेश्वर शिव को हरा दिया।
- अब कथा का परिणाम जो भी रहा हो लेकिन गंदभेरुंड नामक पक्षी अब पूरी तरह से विलुप्त हो चुका है और सिर्फ कर्नाटक राज्य के राजचिन्हों में इसे देखा जा सकता है ।