सनातन धर्म के चिरंजीवी || Longeval of Sanatan Dharma

सनातन धर्म के ग्रंथों में कुछ पुरुषों और प्राणियों के चिरंजीवी होने की बात बार -बार कही गई है। लेकिन अक्सर हम अमरता और चिरंजीवी होने के अर्थ में भूल कर जाते हैं। अमर होने और चिरंजीवी होने में बहुत बड़ा फर्क है। हरेक अमरता प्राप्त प्राणी चिंरजीवी हो सकता है, लेकिन हरेक चिरंजीवी अमर हो ये जरुरी नहीं ।

अमरता और चिरंजीवी होनें में क्या अंतर है What is the difference between being immortal and being Chiranjeevi?

अमरता की अवधारणा अमृतपान से जुड़ी हुई है। समुद्र मंथन के पश्चात जो अमृत निकला उसे पीने वाले अमर हो गए । इस अमृत का पान देवताओं ने किया था इसलिए देवता अमर कहे जाते हैं। लेकिन देवताओं के अलावा भी कुछ लोग अमर हैं। देवताओं के अलावा अमृत का पान सिंहिका राक्षसी के पुत्र राहु ने किया था इसलिए राहु और केतु को भी अमर माना गया है।

सिर्फ देवता ही नहीं हैं अमर

देवताओं ने अमृत का पान कर अमरता को प्राप्त कर लिया लेकिन कुछ ही ऐसे लोग हैं जिन्होंने अमृत का पान किये बिना ही अमरता को प्राप्त किया है। इनमे विनतानंदन गरुड़, भगवान शिव के वाहन नंदी, भगवान शेषनाग, नागराज वासुकि, इंद्र के वाहन ऐरावत प्रमुख हैं। हालांकि एक अपवाद सुकेश राक्षस का भी है। सुकेश राक्षस को भगवान शिव ने अमरता का वरदान दिया है, जबकि उसने अमृत का पान नहीं किया था।

चिरंजीवी का अर्थ है दीर्घकाल तक जीवित रहना

चिरंजीवी होने का अर्थ है दीर्घ काल तक जीवित रहना । चिरंजीवी की भी मृत्यु होती है, लेकिन वो हजारों-लाखों वर्षों तक जीवित रह सकता है । शास्त्रों में महावीर हनुमान, वेदव्यास, अश्वत्थामा, मार्कण्डेय ऋषि, कृपाचार्य , दैत्यराज बलि, राक्षसराज विभीषण, ऋषि परशुराम आदि सात पुरुषों को चिरंजीवी माना गया है।

आमतौर पर हम यही जानते हैं कि महावीर हनुमान चिरंजीवी हैं लेकिन वो एक वानर हैं । इनके अलावा जो पांच चिरंजीवी हैं वो मानव रुप में हैं जिनके नाम व्यास, र, ऋषि परशुराम, मार्कण्डेय, कृपाचार्य और अश्वत्थामा हैं। छठे चिरंजीवी दैत्यराज बलि हैं। लेकिन महाभारत के वन पर्व में दो ऐसे व्यक्तियों की कथा आती है जिन्हें चिरंजीवी कहा गया है । पहले व्यक्ति थे जिनका नाम बक मुनि था। इनकी आयु एक लाख वर्ष से भी अधिक थी । बक मुनि महान तपस्वी थे। बक मुनि ऋषि दल्भ के पुत्र थे और इंद्र के परम मित्र थे।

चिंरजीवी होने का दुख

महाभारत के वन पर्व में बक मुनि और इंद्र का संवाद है। इसमें इंद्र ऋषि बक से पूछते हैं कि चिरंजीवी होने से क्या दुख भोगने पड़ते हैं? बक मुनि इंद्र से कहते हैं कि चिरंजीवी होना कोई सुख की बात नहीं है बल्कि यह एक दुखदायी स्थिति है। चिरंजीवी मनुष्य को अपने प्रियजनों की मृत्यु अपनी आँखों के सामने देखनी पड़ती है। चिरंजीवी व्यक्ति वृद्ध हो जाता है और उसे दूसरों के अन्न पर जीवन निर्वाह करना पड़ता है। चिरंजीवी मनुष्य को अपनी आँखों के सामने समाज का पतन देखना पड़ता है।

महाभारत के वनपर्व में ही एक राजा इंद्रद्युम्न की भी कथा आती है, जो चिरंजीवी थे और बाद में उनकी मृत्यु हो जाती है। वो चिरंजीवी रह कर मृत्यु को प्राप्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं। इंद्रद्युम्न की कथा से यह पता चलता है कि चिरंजीवी मनुष्य को भी कभी न कभी मरना पड़ता है।

चिरंजीवी प्राणी भी पृथ्वी पर वास कर रहे हैं

अभी तक हमने यही जाना है कि आमतौर पर मनुष्यों को ही चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त होता है । लेकिन महाभारत के वन पर्व की एक कथा के अनुसार कुछ अन्य प्राणी भी चिरंजीवी हैं। वन पर्व में इंद्रद्युम्न और मार्कण्डेय ऋषि के बीच संवाद है। ये दोनों ही चिरंजीवी हैं। मार्कण्डेय ऋषि के बारे में महाभारत में कहा गया है कि वो प्रलय के बाद भी जीवित रहते हैं और फिर सृष्टि के निर्माण को अपनी आँखों से देखते हैं। मार्कण्डेय ऋषि ही महाभारत में युधिष्ठिर को अन्य प्राणियों को चिरंजीवी होने की कथा सुनाते हैं।

इस कथा के अनुसार एक बार चिरंजीवी राजा इंद्रद्युम्न मार्कण्डेय ऋषि के पास आते हैं और पूछते है कि क्या वो उन्हें पहचानते हैं। मार्कण्डेय ऋषि राजा इंद्रद्युम्न को पहचानने से इंकार कर देते हैं। तब राजा पूछते हैं कि क्या आपसे भी पहले कोई इस पृथ्वी पर चिरंजीवी प्राणी है?

उल्लू भी है चिरंजीवी प्राणी || Owl is also a Longeval Animal

मार्कण्डेय ऋषि कहते है कि उनसे भी पहले एक उल्लू का जन्म हुआ है जो चिरंजीवी है । प्रावारकर्ण नामक यह उल्लू हिमालय में वास करता है और इसका जन्म मार्कण्डेय ऋषि से भी पहले हुआ था। मार्कण्डेय इंद्रद्युम्न से कहते हैं कि हो सकता है कि वह उल्लू प्रावारकर्ण आपको पहचानता हो। इसके बाद इंद्रद्यूम्न प्रावारकर्ण उल्लू के पास अश्व का वेश धारण कर जाते हैं।

बगुला भी है चिरंजीवी || Heron is also a Longeval

इंद्रद्युम्न जब उस उल्लू के पास जाते हैं तो पूछते हैं कि क्या वो उन्हें पहचानता है। तब उल्लू प्रावारकर्ण उन्हें पहचानने से इंकार कर देता है। इसके बाद राजा उस उल्लू से पूछते हैं कि क्या कोई आपसे भी पहले पैदा हुआ था । तब उल्लू कहता है कि मुझसे भी पहले पैदा हुआ एक चिरंजीवी प्राणी है, जो एक बगुला है। उस बगुले का नाम नाड़ीजंघ है। उल्लू कहता है कि आप उससे जाकर मिलें हो सकता है कि वो आपको पहचानता हो।

कछुआ भी है चिरंजीवी

जब राजा इंद्रद्युम्न उस प्रावारकर्ण उल्लू की बात सुनते हैं तो वो नाड़ीजंघ बगुले से मिलने के लिए पहुंच जाते हैं। नाड़ीजंघ बगुले को देखते ही राजा इंद्रद्युम्न उससे पूछते हैं कि क्या वो उन्हें पहचानता है। नाड़ीजंघ बगुला भी उन्हें पहचानने से इंकार कर देता है । नाड़ीजंघ बगुला उन्हें कहता है कि उससे भी पहले एक चिरंजीवी कछुए अकूपार का जन्म हो चुका है । हो सकता है कि वो राजा इंद्रद्युम्न को पहचान ले।

राजा इंद्रद्युम्न उस कछुए अकूपार के पास जाते हैं और उससे पूछते हैं कि क्या वो उन्हें पहचानता है। तब वह कछुआ अकूपार उन्हें पहचान लेता है और उनकी प्रशंसा करता है। इसके बाद स्वर्ग से एक रथ आता है और राजा इंद्रद्युम्न उस रथ पर सवार होकर स्वर्ग को चले जाते हैं। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि राजा इंद्रद्युम्न सबसे प्राचीन चिरंजीवी हैं और दूसरी बात उनकी भी मृत्यु हो गई ।

वानर और रीक्ष भी हैं चिरंजीवी

  •  वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में श्रीराम के द्वारा कुछ वानरों को चिरंजीवी होने का वरदान दिया गया था। इनमें वीर हनुमान , वानर द्विविद और मैंद शामिल हैं। इनके अलावा रीक्षराज जाम्बवंत को भी चिरंजीवी होने का वरदान मिला था। लेकिन इनमें महावीर हनुमान को छोड़कर सभी की मृत्यु हो गई।
  • द्वापर युद्ध में भगवान कृष्ण के अवतार के वक्त द्विविद और मैंद को मार डाला गया और जाम्बवंत की भी मृत्यु हो गई । लेकिन वीर हनुमान जी आज भी जीवित हैं।
  • चिरंजीवी होने का हमेशा यह गलत अर्थ लगाता जाता है कि वो अमर होते हैं। जबकि ऐसा नहीं है। महाभारत में उल्लिखित चिरंजीवी राजा इंद्रद्युम्न को भी अपना शरीर त्याग कर स्वर्ग जाना पड़ा था।
  • वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में श्रीराम जाम्बवान, विभीषण, हनुमान , मैंद और द्विविद को चिरंजीवी होने का वरदान देते हैं। इनमें जाम्बवंत, मैंद और द्विविद की मृत्यु द्वापर युग में हो जाती है ।

हनुमान जी अमर नहीं हैं वो चिरंजीवी हैं

  • लेकिन विभीषण और महावीर हनुमान कुछ शर्तों की वजह से जीवित हैं। श्रीराम ने विभिषण को यह वरदान दिया है कि जब तक प्रजा यानि मनुष्य जाति और अन्य प्राणियों का अस्तित्व रहेगा विभिषण भी जीवित रहेंगे। अर्थात जब तक इस संसार का प्रलय नहीं हो जाता तब तक विभिषण जीवित रहेंगे । प्रलय काल के दौरान उनकी भी मृत्यु हो जाएगी।
  • महावीर हनुमान जी तब तक जीवित रहेंगे जब तक तीनों लोकों में श्रीराम की पावन कथा चलती रहेगी । अब यह तो लगभग तय है कि श्रीराम की पावन कथा अनंत काल तक रहेगी और तब तक हनुमान जी जीवित रहेंगे। लेकिन ये अमरता नहीं बल्कि शर्तसहित दीर्घजीविता का वरदान है।
  • अश्वत्थामा चिरंजीवी हैं लेकिन वो अमर नहीं है । महाभारत की कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उसे शाप दिया है कि वो पांच हजार वर्षों तक अपने मस्तक पर घाव लिये भटकता रहेगा । पांच हजार वर्षों के बाद उसकी भी मृत्यु हो जाएगी।
  • परशुराम भी चिंरजीवी हैं वो भी अमर नहीं है। उनका जीवन तब तक है जब तक वो भविष्य के विष्णु अवतार भगवान कल्कि को शस्त्र की शिक्षा नहीं दे देते। जब भगवान कल्कि को वो शस्त्र की शिक्षा दे देंगे तब परशुराम का जीवन भी पूरा हो जाएगा।
  • कृपाचार्य को भी चिरंजीवी माना जाता है लेकिन वो भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन हैं। इसका अर्थ यह है कि जिस दिन उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हेतु ज्ञान प्राप्त हो जाएगा वो भी इस संसार से चले जाएंगे।
  • दैत्यराज बलि भी तब तक जीवित रहेंगे जब तक वो धर्म का पालन करते रहेंगे। भगवान वेदव्यास भी तब तक पृथ्वी पर जीवित रहेंगे जब तक भगवान कल्कि का अवतरण नहीं हो जाता ।
  • ऋषि मार्कण्डेय को भगवान शिव के द्वारा चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। वो तब तक जीवित रहेंगे जब तक भगवान शिव के अनुसार पांच वर्ष पूरे नहीं हो जाते । ब्रम्हा का एक दिन एक कल्प अर्थात एक अरब वर्षों का होता है।
  • भगवान शिव की काल गणना भी ऐसी ही है। लेकिन भले भगवान शिव के पांच वर्ष पूरे होने में असंख्य वर्ष लग जाएं , लेकिन एक दिन मार्कण्डेय ऋषि को भी शरीर का त्याग करना ही पड़ेगा। मार्कण्डेय भी अमर नहीं हैं वो भी चिरंजीवी ही हैं।
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Translate »