महाभारत के महान चरित्रों में एक नाम शिखण्डी का भी आता है । शिखण्डी को भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बताया गया है । शिखण्डी को आगे करके ही अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाण चलाए थे। आखिर कौन थे शिखण्डी? क्या महाभारत में वो सिर्फ भीष्म पितामह का वध की वजह होने की वजह से विख्यात हुए हैं या फिर उनके चरित्र से हमें कुछ और शिक्षा भी मिलती है?
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शिखण्डीः एक स्त्री या पुरुष या फिर किन्नर ?
शिखण्डी को महाभारत के उपर बनाए गए लगभग सभी चित्रों में या तो आधी स्त्री आधा पुरुष या फिर किन्नर या ट्रांसजेंडर के रुप में दिखाया जाता रहा है । महाभारत के उपर बने टीवी सीरियल्स में भी शिखण्डी को औरतों की तरह हाव-भाव का प्रदर्शन करते हुए दिखाया गया है।
वास्तव में सच ये है कि शिखण्डी सिर्फ कुछ आयु तक ही स्त्री शरीर में रहे। इसके बाद वो पूरी तरह से पुरुष हो गये थे। शिखण्डी अपने बचपन से ही शरीर से स्त्री होने के बावजूद हाव- भाव के प्रदर्शन में पूरी तरह से पुरुष की तरह थे। जैसा चित्रों और फिल्मों में दिखाया जाता है , न तो उनके लंबे बाल थे और न ही वो ऐसे वस्त्र पहनते थे जो स्त्रियां पहनती हैं।
शिखण्डी के पूर्वजन्म की कथा जब वो स्त्री था
महाभारत के ‘उद्योग पर्व’ में पहली बार शिखण्डी के जीवन के बारे में जानकारी मिलती है। ‘उद्योग पर्व’ में दुर्योधन भीष्म पितामह से पांडवों की सेना के वीरों के बारे में पूछता है। भीष्म अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव , युधिष्ठिर, अभिमन्यु और कई वीरों के साथ शिखण्डी को भी एक महावीर बताते हैं।
भीष्म दुर्योधन को ये भी बताते हैं कि अगर उनके सामने शिखण्डी युद्ध करने आएगा तो वो उसके साथ युद्ध नहीं करेंगे और उस पर कोई भी हथियार नहीं चलाएंगे। इसकी वजह वो ये बताते हैं कि शिखण्डी पहले एक स्त्री रह चुका है और वो स्त्रियों पर हथियार नहीं उठाते।
शिखण्डी के पूर्वजन्म की कथा
भीष्म दुर्योधन को बताते हैं कि शिखण्डी पूर्व जन्म में काशिराज की पुत्री अंबा के रुप में जन्मा था। जब भीष्म के भाई विचित्रवीर्य बड़े हुए तो उनके विवाह के लिए भीष्म काशी गए, जहां काशीराज की तीनों कन्याओं अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर हो रहा था।
भीष्म स्वयंवर में पहुंच कर अम्बा, अम्बालिका और अम्बिका का अपहरण कर लेते हैं और वहाँ मौजूद सभी क्षत्रिय राजाओं को पराजित कर देते हैं। भीष्म तीनों कन्याओं का हाथ पकड़ कर रथ पर बिठा लेते हैं और उन्हें हस्तिनापुर ले आते हैं।
अम्बिका और अम्बालिका तो विचित्रवीर्य से विवाह के लिए राजी हो जाती हैं और इन दोनों का विवाह भी विचित्रवीर्य से हो जाता है , लेकिन अम्बा विवाह करने से इंकार कर देती है।
अम्बा शाल्वराज से प्रेम करती थी
अम्बा भीष्म को बताती है कि वो शाल्वराज को पहले ही अपना दिल दे बैठी है और दोनों एक दूसरे से विवाह करना चाहते थे, लेकिन भीष्म ने उनका अपहरण कर लिया। भीष्म अम्बा को शाल्वराज के पास भेज देते हैं, लेकिन शाल्वराज भीष्म के डर से और अम्बा के किसी दूसरे पुरुष के द्वारा स्पर्श कर लिए जाने से विवाह करने से इंकार कर देते हैं।
- अम्बा वापस भीष्म के पास आती है , लेकिन भीष्म उससे विवाह करने को राजी नहीं होते, क्योंकि भीष्म ने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की थी। अम्बा कहती है कि “आपने मेरा हाथ पकड़ा था, इसलिए मैं धर्मानुसार आपकी पत्नी होने के योग्य हूँ।“
- दूसरे, उस काल में धर्मानुसार क्षत्रियों में ‘राक्षस विवाह’ करने की प्रथा थी। ‘राक्षस विवाह’ में कन्या की सहमति या असहमति से उसका अपहरण कर लिया जाता है और उससे विवाह किया जाता है।
- इस प्रकार का विवाह क्षत्रियों में मान्य था। कृष्ण ने रुक्मणी का हरण कर विवाह किया था, अर्जुन ने सुभद्रा का अपहरण कर उनसे विवाह किया था। इस तर्क से अंबा से भीष्म का विवाह करना धर्म के अनुसार था।
- लेकिन भीष्म का ये कहना था कि उन्होंने अंबा का अपहरण अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य से विवाह कराने के लिए किया था, इसलिए वो छोटे भाई से विवाह योग्य है> इस तर्क से अम्बा उनके लिए छोटी बहन के समान है । दूसरे, भीष्म ने आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा ले रखी थी।
अम्बा की भीष्म के वध की प्रतिज्ञा
निराश अम्बा ये प्रतिज्ञा लेती है कि या तो वो भीष्म का वध किसी राजा या दूसरे वीर से कराएगी, या फिर वो तपस्या के द्वारा भीष्म के वध के लिए महादेव से पुरुष होने का वरदान मांगेगी । अम्बा रोती बिलखती हस्तिनापुर से बाहर एक वन में चली जाती है जहां शैखावत्य नामक ऋषि का आश्रम था। वहां अम्बा को अपने नाना होत्रराज और परशुराम जी के दर्शन होते हैं। अम्बा परशुराम जी से अपनी दुखभरी कथा कहती है और भीष्म का वध करने का अनुरोध करती है।
परशुराम की प्रतिज्ञा
अम्बा के अनुरोध करने पर परशुराम अपनी तीन प्रतिज्ञाओं के बारे में बताते हैं। परशुराम की पहली प्रतिज्ञा थी कि कोई भी दूसरे वर्ण का व्यक्ति अगर किसी ब्राह्म्ण को सताएगा तो परशुराम उस अत्याचारी का वध कर देंगे। परशुराम की दूसरी प्रतिज्ञा थी कि अगर कोई उनकी शरण में आकर उनसे मदद की याचना करता है, तो वो उस शरणार्थी की जरुर सहायता करेंगे और उसके लिए शस्त्र उठाएंगे। परशुराम की तीसरी प्रतिज्ञा थी कि जिस किसी व्यक्ति ने सारे क्षत्रियों को अपने पराक्रम से पराजित किया हो , परशुराम उसका भी वध कर देंगे।
अम्बा कहती है कि “मैं आपकी शरण में आई हूं और भीष्म ने स्वयंवर में सारे क्षत्रियों को पराजित किया है , इसलिए इन दोनों वजहों से आपको मेरी सहायता करने के लिए शस्त्र उठाना चाहिए।“भीष्म परशुराम के शिष्य रहे थे, इसलिए परशुराम अम्बा को अपने साथ हस्तिनापुर ले जाते हैं और भीष्म को अंबा से विवाह करने की आज्ञा देते हैं। भीष्म अपनी प्रतिज्ञा से बंधे होने की वजह से अंबा से विवाह करने से मना कर देते हैं।
भीष्म और परशुराम का युद्ध
परशुराम भीष्म के द्वारा अपने गुरु की अवज्ञा करने से क्रोधित हो जाते हैं और युद्ध के लिए ललकारते हैं। भीष्म और परशुराम के बीच कुरुक्षेत्र में महान संग्राम होता है। ये युद्ध कई दिनों तक चलता है , दोनों में कोई भी इस युद्ध को जीत नहीं पाता। एक दिन युद्ध के दौरान परशुराम के बाणों से भीष्म बेहोश हो जाते हैं, तो आठों वसु उनकी रक्षा करते हैं और उन्हें प्रस्वाप नामक अस्त्र देते हैं। इस अस्त्र को चलाने से परशुराम की मृत्यु नहीं होती लेकिन वो लंबे वक्त के लिए गहरी निद्रा में जरुर चले जाते ।
एक दिन परशुराम ने भीष्म पर ब्रम्हास्त्र चला दिया। भीष्म मे भी परशुराम पर ब्रम्हास्त्र चला दिया । इसके बाद जैसे ही भीष्म परशुराम पर प्रस्वास्त्र चलाने जा रहे थे कि देवतागणों ने भीष्म को ये अस्त्र चलाने से मना कर दिया। भीष्म ने देवताओं के कहने पर परशुराम पर ये अस्त्र नहीं चलाया । भीष्म को ऐसा करते देखकर परशुराम प्रसन्न हो जाते है और अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं।
देवतागण परशुराम को भी समझाते हैं कि भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ है, इसलिए वो आपसे पराजित नहीं होंगे। देवतागण ये भी बताते हैं कि नियति के द्वारा भीष्म का वध अर्जुन के हाथों होगा। भीष्म और परशुराम का युद्ध समाप्त हो जाता है और अंबा को न्याय नहीं मिल पाता है ।
अम्बा की तपस्या और महादेव से वरदान प्राप्ति
निराश अम्बा वत्स देश चली जाती है और वहां घनघोर तपस्या करने लगती है । अंबा की तपस्या को देखकर माता गंगा प्रगट होती है। भीष्म माँ गंगा के पुत्र थे और अंबा भीष्म के वध के लिए तपस्या कर रही थी। माँ गंगा क्रोध में आकर अम्बा को शाप दे देती हैं कि वो एक नदी के रुप में परिवर्तित हो जाए।
अगले जन्म में अम्बा अपने आधे शरीर से एक नदी के रुप में बदल जाती है और उसका आधा शरीर एक कन्या के रुप में जन्म लेता है। अम्बा फिर से तपस्या शुरु करती है और महादेव शँकर को प्रसन्न करती है। भगवान शंकर उसे वरदान देते हैं कि अगले जन्म में तुम भीष्म के वध का कारण बनोगी।
अंबा कहती है कि ‘मैं तो स्त्री हूं फिर भीष्म का वध कैसे करुंगी, शँकर कहते हैं अगले जन्म मे तुम कुछ आयु के लिए ही स्त्री रहोगी बाद में तुम पुरुष के रुप में परिवर्तित हो जाओगी और युद्ध में महान पराक्रम भी दिखाओगी अम्बा वन में लकड़ियाँ एकत्रित करती है और उन लकड़ियों से चिता बना कर आत्मदाह कर लेती है।
अम्बा का द्रुपद के घर शिखण्डी के रुप में जन्म लेने की कथा
पांचाल नरेश द्रुपद निःसंतान थे , उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महादेव शँकर की कठोर तपस्या की। भगवान शँकर ने द्रुपद को वरदान दिया कि तुम्हारे घर एक कन्या का जन्म होगा जो बाद में पुरुष बन जाएगी। कुछ समय के बाद द्रुपद की पत्नी के गर्भ से अम्बा ने एक कन्या के रुप में पुनर्जन्म लिया।
महादेव शँकर के इस वरदान को याद करके कि ‘ये कन्या बाद में पुरुष हो जाएगी’, द्रुपद ने उसका लालन पालन बचपन से ही एक पूर्ण पुरुष के रुप मे करना शुरु किया और उस कन्या का नाम शिखण्डिनी रखा। शिखण्डिनी दुनिया के लिए शिखण्डी नामक एक पुरुष था, जबकि वह मूल रुप से एक स्त्री थी।
जब शिखण्डिनी बड़ी हुई तो द्रुपद को उसके विवाह की चिंता हुई। उन्हें महादेव शँकर का वरदान याद था, लेकिन अभी तक शिखण्डिनी स्त्री से पुरुष के रुप में परिवर्तित नहीं हुई थी। द्रुपद ने अपनी रानी की सलाह और महादेव शँकर के वरदान पर भरोसा करके शिखण्डी का विवाह दशार्णराज हिरण्यवर्मा की बेटी से कर दिया। विवाह के दौरान द्रुपद ने हिरण्यवर्मा को भी नहीं बताया कि शिखण्डी पुरुष नहीं बल्कि स्त्री है।
विवाह के बाद शिखण्डी की पत्नी को पता चल गया कि वो एक स्त्री है, ये बात उसने अपनी सहेलियों को बता दी। जैसे ही इस बात की सूचना हिरण्यवर्मा को लगी उसने द्रुपद पर धोखे का आरोप लगाया और उसके राज्य पर हमला करने की धमकी दी।
स्त्री शिखण्डीनी का पुरुष शिखण्डी के रुप में परिवर्तित होने की कथा
- हिरण्यवर्मा के हमले की धमकी से चिंतित शिखण्डिनी वन में चली गई जहां उसकी मुलाकात स्थूलकर्ण नामक एक यक्ष से हुई। शिखण्डिनी ने अपना दुख उसके सामने बताया तो स्थूलकर्ण को दया आ गई ।
- स्थूलकर्ण यक्ष ने शिखण्डिनी को कहा कि मैं कुछ समय के लिए तुम्हारा स्त्रीत्व धारण कर लेता हूँ और तुमको अपना पुरुषत्व दे देता हूँ। जब हिरण्यवर्मा वापस लौट जाएं तो तुम मुझे मेरा पुरुषत्व लौटा देता और फिर से स्त्री बन जाना। स्थूलकर्ण ने अपना पुरुषत्व शिखण्डिनी को दे दिया और शिखण्डिनी एक स्त्री से पूर्ण पुरुष बन कर अपने राज्य में लौट आया।
- राजा हिरण्यवर्मा ने अपने जासूसों के द्वारा जाँच की तो उन्हें पता चला कि शिखण्डी स्त्री नहीं एक पुरुष है और वो संतुष्ट होकर लौट गए। इस प्रकार शिखण्डी के उपर आया संकट टल गया।
- स्थूलकर्ण पुरुष से स्त्री बन चुका था और वो कुछ समय के लिए अपने महल के अंदर छिप कर रहने लगा। स्थूलकर्ण से मिलने के लिए यक्षराज कुबेर आए तो स्थूलकर्ण लज्जा की वजह से सामने नहीं आया। यक्षराज कुबेर को जब स्थूलकर्ण के स्त्री होने और शिखण्डी को अपना पुरुषत्व देने की कथा का पता चला तो यक्षराज कुबेर क्रोधित हो गए।
- यक्षराज कुबेर ने स्थूलकर्ण को शाप दे दिया कि वो हमेशा के लिए स्त्री ही बन जाए । बाद में जब कुबेर का क्रोध कम हुआ तो उन्होंने शाप को घटा दिया और कहा “जब तक शिखण्डी की मृत्यु न हो जाए तभी तक स्थूलकर्ण स्त्री बन कर रहेगा। शिखण्डी की मृत्यु के बाद स्थूलकर्ण वापस पुरुष बन जाएगा।“ इस प्रकार पूरे जीवन के लिए शिखण्डी पुरुष बन गया।
- महाभारत के युद्ध के पश्चात अश्वत्थामा ने शिखण्डी का वध उस वक्त कर दिया जब शिखण्डी निद्रा में अधीन सो रहे थे। शिखण्डी के वध के ठीक बाद स्थूलकर्ण वापस पुरुष बन गया।
भीष्म की प्रतिज्ञा का सच
भीष्म दुर्योधन को कहते हैं कि वो शिखण्डी के उपर अस्त्र नहीं चलाएंगे इसकी वजह वो अपनी एक प्रतिज्ञा को बताते हैं। ये प्रतिज्ञा है –
- भीष्म किसी स्त्री पर अस्त्र नहीं उठाएंगे।
- जो पहले स्त्री रहा हो और बाद में पुरुष रहा हो, भीष्म उस पर भी हथियार नहीं उठाएंगे।
- जो स्त्री के नाम वाला हो ,उस पर भी भीष्म अस्त्र नहीं उठाएंगे
- जो स्त्रियों जैसे कपड़े पहने हुए हो उस पर भी भीष्म अस्त्र नहीं उठाएंगे।
भीष्म कहते हैं कि “चूँकि शिखण्डी पहले एक स्त्री था इसलिए वो उस पर हथियार नहीं उठाएंगे।“ लेकिन भीष्म उस अर्जुन से युद्ध करते हैं और उस पर हथियार उठाते हैं जिसने पहले अज्ञातवास के काल में पुंसक वृहन्नला बन कर स्त्री का नाम धारण किया था और स्त्रियों जैसे कपड़े भी पहने थे।
भीष्म का वध और शिखण्डी
जब महाभारत के युद्ध के नौ दिन बीत चुके थे और कोई भीष्म का वध नहीं कर पा रहा था तो खुद पांडवों ने उनसे पूछा कि उनका वध करने का उपाय क्या है?भीष्म ने पांडवो को कहा कि वो शिखण्डी को आगे करके युद्ध करें और उनका वध करें क्योंकि शिखण्डी के सामने आते ही वो उस पर हथियार नहीं उठाएंगे।
दूसरे दिन जब शिखण्डी को आगे करके अर्जुन और अन्य पांडव वीर भीष्म से युद्ध करते हैं तो भीष्म शिखण्डी पर तो कोई बाण नहीं चलाते हैं लेकिन अर्जुन पर वो लगातार हमले करते हैं।
इसका अर्थ ये है कि भीष्म ने सिर्फ शिखण्डी पर बाण नहीं चलाया था, बाकि योद्धाओं पर वो लगातार बाण चला रहे थे ।
भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था। भीष्म को युद्ध करते देख आखिर में देवतागण और आठों वसु आए और उनसे कहा कि वो अब धर्म का मार्ग प्रशस्त करने के लिए मृत्यु का वरण करने के लिए तैयार हो जाएँ।
भीष्म देवताओं की बात मान लेते हैं और इसी दौरान अर्जुन उन पर पच्चीस बाण चलाता है जो भीष्म को पृथ्वी पर गिरा देते हैं। भीष्म युद्ध से निवृत हो जाते हैं और बाणों की शय्या पर सो जाते हैं।
महाभारत को गौर से पढ़ने पर ये पता चलता है कि भीष्म ने शिखण्डी पर बाण नहीं चलाया था ये सत्य है , लेकिन वो शिखण्डी के सामने होते हुए भी बाकियों से युद्ध कर रहे थे । शिखण्डी सिर्फ इसलिए भीष्म के वध का काऱण बने क्योंकि उनकी और देवताओं की वजह से भीष्म थोड़े ढीले पड़े और मृत्यु का वरण करने के लिए मानसिक रुप से तैयार हुए। आखिर मे अर्जुन के बाणों से वो शरशय्या पर सो गए।
शिखण्डी का बेटा/पुत्र
शिखण्डी भले ही पहले स्त्री थे, लेकिन वो बाद में पूर्ण रुप से पुरुष के रुप में परिवर्तित हो गए थे। भीष्म पर्व और द्रोण पर्व में शिखण्डी के पुत्र के बारे में भी जानकारी मिलती है। शिखण्डी के पुत्र का नाम क्षत्रवर्मा था और वो भी महाभारत के युद्ध में शिखण्डी के साथ पांडवों के पक्ष में लड़ा था। जिन शिखण्डी को नपुंसक बताया जाता रहा है ,उनकी पत्नी भी थी और उनका एक पुत्र भी था। विष्णुसहस्त्रनाम में भगवान विष्णु के हज़ार नामों में एक नाम शिखण्डी भी है।