श्रीराम का चरित्र और उनकी कथा का पूरे संसार में प्रचार होता रहता है । श्रीराम के द्वारा सीता त्याग की कथा एक विवादास्पद मोड़ है, जब श्रीराम लोकापवाद की वजह से सीता का त्याग करते हैं और वाल्मीकि के आश्रम में श्रीराम और सीता के पुत्रों लव और कुश का जन्म होता है।
वाल्मीकि रामायण के बालकांड में लव-कुश की कथा
वाल्मीकि रामायण के बालकांड और उत्तरकांड में लव और कुश को श्रीराम और सीता के दो जुड़वां पुत्रों के रुप में वर्णित किया गया है। वाल्मीकि रामायण के बालकांड की कथा के अनुसार लव और कुश वाल्मीकि मुनि के आश्रम में रहते थे और वाल्मीकि ने उन्हें ही रामायण की कथा सबसे पहले सुनाई थी ।
वाल्मीकि रामायण के बालकांड के इन श्लोकों से पता चलता है कि लव और कुश दोनों ही मुनि वाल्मीकि के आश्रम में ही रह कर सभी विद्याओं के ज्ञाता हुए थेः-
तस्य चिन्तयमानस्य महर्षेर्भावितात्मनः |
अगृह्णीतां ततः पादौ मुनिवेषौ कुशीलवौ || १-४-४
अर्थः- शुद्ध अंतःकरण वाले उन महर्षि के इस प्रकार विचार करते ही मुनिवेष में रहने वाले राजकुमार कुश और लव ने आकर उनके चरणों में प्रणाम किया।
कुशीलवौ तु धर्मज्ञौ राजपुत्रौ यशस्विनौ |
भ्रातरौ स्वरसम्पन्नौ ददर्शाश्रमवासिनौ || १-४-५
अर्थः- राजकुमार कुश और लव दोनों ही भाई धर्म के ज्ञाता और यशस्वी थे। उनका स्वर बड़ा ही मधुर था और वे मुनि के आश्रम में ही रहते थे।
इन दो श्लोकों से यह स्पष्ट होता है कि कुश और लव दोनों वाल्मीकि के आश्रम में रहते थे और दोनों ही राजकुमार थे।
स तु मेधाविनौ दृष्ट्वा वेदेषु परिनिष्ठितौ |
वेदोपबृंहणार्थाय तावग्राहयत प्रभुः || १-४-६
काव्यं रामायणं कृत्स्न्नं सीतायाश्चरितं महत् |
पौलस्त्यवधमित्येवं चकार चरितव्रतः || १-४-७
अर्थः- लव और कुश की धारणाशक्ति अद्भुत थी और दोनों ही वेदों में पारंगत हो चुके थे। भगवान वाल्मीकि ने उनकी ओर देखा और उन्हें सुयोग्य समझ कर उत्तम व्रत का पालन करने वाले उन महर्षि ने वेदार्थ के विस्तार के साथ ज्ञान कराने के लिए , उन्हें सीता के महान चरित्र से युक्त संपूर्ण रामायण नामक महाकाव्य का , जिसका दूसरा नाम पौलस्त्य वध था, अध्ययन कराया ।
इसके बाद की कथा ये है कि लव और कुश ने पहले अपने आश्रम के मुनियों को रामायण का गान सुनाया और इसके बाद वो अयोध्या की गलियों में राम कथा का गायन करने लगे । तभी एक दिन राम ने उन्हें रास्ते में राम कथा का गान करते सुना
प्रशस्यमानौ सर्वत्र कदाचित्तत्र गायकौ |
रथ्यासु राजमार्गेषु ददर्श भरताग्रजः || १-४-२८
अर्थः- एक समय सर्वत्र प्रशंसित होने वाले राजकुमार कुश और लव अयोध्या की गलियों और सड़कों पर रामायण के श्लोकों का गान करते हुए विचर रहे थे तो इसी समय उनके उपर भरत के बड़े भाई यानी श्रीराम की दृष्टि पड़ी।
इसके बाद श्रीराम ने उन्हें अपनी सभा में राम कथा कहने के लिए आमंत्रित किया। इससे स्पष्ट होता है कि लव और कुश का जन्म वाल्मीकि जी के आश्रम में ही हुआ था और वहीं वो बड़े होकर राम कथा के गायक भी बनें।
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में लव कुश जन्म की कथा
लव-कुश की कथा वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में भी मिलती है । जहाँ हमें वाल्मीकि रामायण के बालकांड से सिर्फ ये पता चलता है कि लव और कुश वाल्मीकि के आश्रम में रहते थे और वाल्मीकि के आदेश पर अयोध्या में रामायण की कथा का प्रचार कर रहे थे , वहीं हमें वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड से लव और कुश के जन्म की कथा और श्रीराम द्वारा उन्हें अपने पुत्र के रुप में अपनाने की कथा भी मिलती है।
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के सर्ग 66 में हमें वाल्मीकि के आश्रम में शत्रुघ्न के पधारने और वहाँ उन्हें सीता देवी के गर्भ से लव-कुश के जन्म का समाचार मिलने की कथा मिलती है।
यामेव रात्रिं शत्रुघ्नः पर्णशालां समाविशत् ।
तामेव रात्रिं सीतापि प्रसूता दारद्वयम ।। 7:66:1
ततोSअर्धरात्रे बालका मुनिदारकाः ।
वाल्मिकेः प्रियमाचख्युः सीतायाः प्रसवं शुभम् ।।7:66:2
भगवन् रामपत्नी सा प्रसूता दारकद्वयम् I
ततो रक्षां महातेजः कुरु भूतविनाशिनीम् ।।7:66:3
अर्थातः- जिस रात को शत्रुघ्न ने वाल्मीकि के पर्णशाला में प्रवेश किया था उसी रात में सीता जी ने दो पुत्रों को जन्म दिया था। तदन्तर आधी रात के समय कुछ मुनिकुमारों ने वाल्मीकि जी के पास आकर उन्हें सीता के प्रसव का शुभ समाचार सुनाया । “भगवन ! श्रीराम की पत्नी ने दो पुत्रों को जन्म दिया है ; अतः महातेजस्वी महर्षे ! आप उनकी बालग्रहजनित बाधा निवृत्त करने वाली रक्षा करें।“
जगाम तत्र ह्रष्टात्मा ददर्श च कुमारकौ ।
भूतघ्नीं चाकरोत् ताभ्यां रक्षां रक्षोविनाशिनीम् ।।7:66:5
अर्थः- वाल्मीकि जी ने प्रसन्नचित्त होकर सूतिकागार में प्रवेश किया और उन दोनों कुमारों को देखा तथा उनके लिए भूत और राक्षसों का विनाश करने वाली रक्षा की व्यवस्था की ।
कुशमुष्टिमुपादाय लवं चैव तु स द्विजः ।
वाल्मीकिः प्रददो ताभ्यां रक्षां भूतविनाशिनीम्।।7:66:6
यस्तयोः पूर्वजो जातः स कुशैर्मन्त्रसत्कृतैः ।
निर्मार्जनीयस्तु तदा कुश इत्यस्य नाम तत् ।।7:66:7
यश्चावरो भवेत् ताभ्यां लवेन सुसमाहितः ।
निर्मार्जनीयोः वृद्धाभिर्लवेति च स नामतः ।।7:66:8
अर्थः- वाल्मीकि ने एक कुशाओं का मुट्ठा और उनके लव लेकर उनके द्वारा दोनों बालकों की भूत बाधा का निवारण करने के लिए रक्षा विधि का उपदेश दिया। “वृद्धा स्त्रियों को चाहिए कि इन दोनों बालकों में जो पहले उत्पन्न हुआ है, उसका मंत्रों के द्वारा संस्कार किये हुए इन कुशों से मार्जन करें। ऐसा करने पर उस बालक का नाम ‘कुश’ होगा और उनमें जो छोटा है , उसका लव से मार्जन करें । इससे उसका नाम ‘लव’ होगा।“
एवं कुशलवौ नाम्ना तावुभौ यमजातकौ I
मत्कृताभ्यां च नामभ्यां ख्यातियुक्तौ भविष्यतः ।।7:66:9
अर्थः- इस प्रकार जुड़वें उत्पन्न हुए ये दोनों बालक क्रमशः कुश और लव के नाम धारण करेंगे और मेरे द्वारा निश्चित किये गए इन्हीं नामों से भूमंडल में विख्यात होंगे।
तथा तां क्रियामाणां च वृद्धाभिगोत्रनाम च ।
संकीर्तनं च रामस्य सीतायाः प्रसवो शुभौ ।। 11
अर्धरात्रे तु शत्रुघ्नः शुश्राव सुमहत् प्रियम ।
पर्णशालां ततो गत्वा मातर्दिष्योति चाब्रवीत।। 12
अर्थः- जब वृद्धा स्त्रियाँ इस प्रकार रक्षा करने लगीं , उस वक्त आधी रात को श्रीराम और सीता के नाम , गोत्र के उच्चारण की ध्वनि शत्रुघ्न के कानों में पड़ीं । साथ ही उन्हें सीता के दो सुंदर पुत्र होने का संवाद भी प्राप्त हुआ। तब वे सीता की पर्णशाला में गए और बोले- “माता जी ये बड़े सौभाग्य की बात है ।“
श्रीराम के पुत्र लव और कुश का अश्वमेध यज्ञ में आना
वाल्मीकि रामायण के बालकांड और उत्तरकांड से ज्ञात होता है कि वाल्मीकि ने सबसे पहले अपनी रामायण लव और कुश को सुनाई थी। वाल्मीकि के आदेश पर अयोध्या में लव और कुश ने रामायण का प्रचार किया जिसे सुन कर श्रीराम ने उन्हें अपने राजदरबार में आमंत्रित किया।
प्रशस्य
प्रशस्यमानौ सर्वत्र कदाचित् तत्र गायकौ ।
रथ्यासु राजमार्गेषु ददर्श भरताग्रजः ।। 1:4:28
स्वेश्म चानीय ततौ भ्रातरौ स कुशीलवौ
पूजयामास पूजार्हौ रामः शत्रुनिबर्हणः ।।1:4:29
अर्थातः- एक समय सर्वत्र प्रशंसित होने वाले राजकुमार कुश और लव अयोध्या की गलियों और सड़कों पर रामायण के श्लोकों का गान करते हुए विचर रहे थे । इसी समय उनके उपर भरत के बड़े भाई अर्थात श्रीराम की दृष्टि उन पर पड़ी। उन्होंने उन आदर योग्य भाइयों को अपने घर बुलाकर उनका यथोचित सम्मान किया ।
तौ चापि मधुरं रक्तं स्वचित्तायतनिः स्वनम् ।
तन्त्रीलयवदत्यर्थं विश्रुतार्थमगायताम्।।1:4:33
अर्थः- श्रीराम की आज्ञा पाकर दोनों भाई( लव और कुश) वीणा के लय के साथ अपने मन के अनुकूल मधुर स्वर में राग अलापते हुए रामायण काव्य का गान करने लगे ।
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में जब श्रीराम अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करते हैं तब उस वक्त लव और कुश महर्षि वाल्मीकि के साथ अयोध्या आते हैं और अयोध्या की गलियों और सड़कों पर रामायण महाकाव्य का गान करते हैं। महर्षि वाल्मीकि लव और कुश को अयोध्या में रामायण का गान करने का आदेश देते हैं
वर्तमाने तथाभूते यज्ञे च परमाद्भुते ।
साशिष्य आजगामाशु वाल्मीकिर्भगवाननृषि।। 7:93:1
अर्थः- इस प्रकार वह अत्यंत अद्भुत यज्ञ जब शुरु हुआ , उस समय भगवान वाल्मीकि अपने शिष्यों के साथ उसमे शीघ्रतापूर्वक पधारे।
स शिष्यावब्रवीद् ह्रष्टौ युवां गत्वा समाहितौ।
कृत्स्नं रामायणं काव्यं गायतां परया मुदा ।। 7:93:5
अर्थः- उन्होंने( वाल्मीकि) अपने ह्ष्ट पुष्ट दो शिष्यों से कहा- “तुम दोनों भाई एकाग्रचित्त होकर सब ओर घूमफिर कर बड़े आनंद के साथ संपूर्ण रामायण काव्य का गान करो।“
संदिष्टौ मुनिना तेन तावुभौ मैथिलीसुतौ ।
तथैव कारवावेति निर्जग्मतुररिंदमौ ।।7:93:18
अर्थः- मुनि के इस प्रकार आदेश देने पर मिथिलेश कुमारी सीता के वे दोनों शत्रुदमन पुत्र “बहुत अच्छा , हम ऐसा ही करेंगे ।“ यह कह कर वहां से चल दिये।
तां स शुश्राव काकुस्तस्थः पूर्वाचार्यर्विनिर्मिताम् ।
अपूर्वां पाठ्यजातिं च गेयेन समलंकृताम् ।।7:94:2
अर्थः- श्रीरघुनाथ जी ने भी वह गान सुना , जो पूर्ववर्ती आचार्यों के बताए हुए नियमों के अनुकूल था । संगीत की विशेषताओं से युक्त स्वरों के अलापने की अपूर्व शैली थी।
तस्मिन गीते तु विज्ञाय सीतापुत्रौ कुशीलवौ ।
तस्याः परिषदो मध्ये रामो वचनामब्रवीत ।। 7:94:2
अर्थः- उस कथा से ही श्रीराम को ये मालूम हुआ कि कुश और लव दोनों ही कुमार सीता के ही पुत्र हैं।
इसके बाद की कथा यह है कि श्रीराम वाल्मीकि और सीता दोनों को ही राजदरबार में आमंत्रित करते हैं ताकि सीता अपनी चारित्रिक शुद्ध्ता का प्रमाण प्रस्तुत करें। दूसरे दिन महर्षि वाल्मीकि के साथ सीता राजदरबार में पधारती हैं और अपनी चारित्रिक शुद्धता का प्रमाण देने के लिए पृथ्वी देवी से प्रार्थना करती हैं कि वो उन्हें अपने अंदर धारण कर लें। पृथ्वी से एक सिंहासन प्रगट होता है और सीता उस पर बैठ कर पृथ्वी के अंदर समा जाती हैं।इसके बाद श्रीराम लव और कुश दोनों को अपने पुत्र के रुप में स्वीकार करते हैं ।
रामचरितमानस में लव और कुश की कथा
वाल्मीकि रामायण की कथा से यह स्पष्ट होता है कि लव और कुश ने श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा नहीं पकड़ा था और न ही श्रीराम की सेना के साथ उनका कोई युद्ध हुआ था।वाल्मीकि रामायण के किसी भी श्लोक में जनश्रुति में प्रचलित लव –कुश और श्रीराम के युद्ध की कथा का वर्णन नहीं है।
लव और कुश के वाल्मीकि के आश्रम में जन्म लेने और अयोध्या में अश्वमेध यज्ञ के दौरान उनके वहाँ पधारने और रामायण काव्य का गान करने की ही कथा कालिदास के रघुवंशम में भी मिलती है जो वाल्मीकि के रामायण और महाभारत में वर्णित ‘रामोपाख्यान’ के बाद श्रीराम के जीवन से संबंधित सबसे प्राचीन कथा है।
तुलसीदास रचित रामचरितमानस में भी लव- कुश और श्रीराम के बीच किसी युद्ध का वर्णन नहीं मिलता है और न ही लव- कुश के द्वारा श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के पकड़ने का वर्णन मिलता है। रामचरितमानस में सिर्फ एक स्थान पर सीता के द्वारा लव और कुश नामक दो पुत्रों की माता होने का वर्णन मिलता है –
राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भाँति सिखावहिं नीती।।
हरषित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा।।
अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्रीरघुबीर चरन रति चहहीं।।
दुइ सुत सुन्दर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए।।
दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर। हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर।।
दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे। भए रूप गुन सील घनेरे।।
अर्थः- राम अपने भाइयों पर बहुत प्रेम रखते हैं। सभी भाइयों को कई प्रकार की नीतियाँ सीखाते हैं। नगर के सभी लोग खुशी से रहते हैं और देव दुर्लभ भोगों को भोगते हैं। सभी ब्रह्मा जी से यही मनाते रहते हैं कि उनका प्रेम रघुवीर पर बना रहे ।
इसके बाद के दोहे का अर्थ है कि सीता के दो सुंदर पुत्र हुएं जिनका वर्णन वेद पुराणों ने लव और कुश के रुप में गाया है। दोनों विजय और विनय के गुणों के मंदिर हैं। दोनों देखने में श्रीराम के प्रतिबिंब लगते हैं। बाकि भाइयों के भी दो- दो पुत्र हुए जो रुप , गुण और शील तीनों से पूर्ण हैं।
लव- कुश और श्रीराम का युद्ध
सीता के दोनों जुड़वां पुत्रों लव और कुश के द्वारा श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ने और श्रीराम की सेना के साथ उनके युद्ध का वर्णन सबसे पहली बार पद्मपुराण में आती है।
पद्मपुराण की कथा के अनुसार श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था । इस यज्ञ के घोड़े को पृथ्वी पर विचरने के लिए छोड़ा गया था। इस घोड़े को सबसे पहले लव पकड़ लेते हैं । जब घोड़े की रक्षा कर रही शत्रुघ्न की सेना से लव और कुश का युद्ध होता है तो इस युद्ध मे लव और कुश शत्रुघ्न की सेना को पराजित कर देते हैं।
लव और कुश न केवल भरत के पुत्र पुष्कल को युद्ध में पराजित करते हैं बल्कि ये दोनों हनुमान जी को भी युद्ध में मूर्छित कर देते हैं। इसके बाद शत्रुघ्न का लव और कुश के साथ युद्ध होता है। लव और कुश शत्रुघ्न को पराजित कर देते हैं । सुग्रीव भी लव और कुश से पराजित हो जाते हैं।
जब लव और कुश हनुमान और सुग्रीव को बंदी बना कर आश्रम लौटते हैं तो सीता इन वानर वीरों को बंदी देखकर परेशान हो जाती हैं। सीता अपने पुत्रों लव और कुश को बताती हैं कि श्रीराम ही उनके पिता है। सीता हनुमान और सुग्रीव को कैद से आजाद कर देती हैं और इसके बाद लव और कुश श्रीराम के अश्व को लौटा देते हैं।
शत्रुघ्न और सभी वीर अयोध्या जाकर लव और कुश की वीरता के बारे में बताते हैं। श्रीराम अयोध्या पधारे वाल्मीकि जी से लव और कुश का परिचय पूछते हैं तो वाल्मीकि उन्हें बताते हैं कि ये दोनो श्रीराम और सीता के पुत्र हैं।
इसके बाद श्रीराम सीता को वाल्मीकि के आश्रम से अयोध्या आने का आदेश देते हैं। श्रीराम और सीता दोनों मिलकर अश्वमेध यज्ञ को संपन्न करते हैं और हमेशा के लिए एक साथ रहने लगते हैं।
पद्मपुराण की कथा के अनुसार सीता पृथ्वी में समाहित नहीं होती हैं और वो श्रीराम के साथ अयोध्या में रहते हुए तीन और अश्वमेध यज्ञों में शामिल होती हैं। श्रीराम और सीता चिरकाल तक एक दूसरे के साथ रहते हैं।