राम की अयोध्या, राम की जन्मभूमि। अयोध्या, जिसे युद्ध में कोई जीत न सके। एक अपराजेय नगरी। कोसल की राजधानी , जिसकी स्थापना सूर्यपुत्र मनु ने की। इक्ष्वाकु वंश की गौरव गाथा के समेटे यह आज भी सनातन हिंदू धर्म के सबसे पवित्र नगरों में एक है। राम जन्मभूमि और राजा राम की कर्मभूमि ये सभी हिंदुओं के लिए श्रद्धा की नगरी है। सरयू नदी के तट पर बसी राम की अयोध्या नगरी हजारों सालों पूरे विश्व के हिंदुओं को आकर्षित करती रही है।
राम की अयोध्या
राम की अयोध्या कैसी थी और आज राम की अयोध्या कैसी है?राम ने अपनी राजधानी अयोध्या को कैसे संवारा और अपने राज्य को रामराज्य में कैसे बदल दिया? राम ने कैसे अयोध्या को एक आदर्श शासन के केंद्र के रुप में विकसित किया ? इस लेख में वाल्मीकि रामायण और दूसरे ग्रंथों की सहायता से हम राम की अयोध्या का फिर वही पुराना चित्र उकेरेंगे।
अयोध्या 8 पवित्र नगरों में एक है
राम की अयोध्या सनातन धर्म के महान आठ पवित्र नगरों में एक है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम की अयोध्या का निर्माण स्वयं पृथ्वी के प्रथम शासक वैवस्वत मनु ने अपने हाथों से किया था। इस नगर की सुंदरता और शक्ति का वर्णन महर्षि वाल्मीकि ने बहुत ही विस्तार से किया है। अयोध्या की तुलना इंद्र के नगर अमरावती से की जाती थी। कहा जाता है कि इस नगर में रहने वाले सभी पूर्ण रुप से सुखी और संपन्न थे। इस नगर में रहने वाले सभी लोग नैतिक और धार्मिक रुप से अत्यंत उच्च कोटि के थे। यहां सभी वर्णों के लोग अपने अपने धर्म का पालन करते देखे जाते थे। यहां किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती थी।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस और तमिल संत महाकवि कम्ब ने अपने तमिल रामायण में भी अयोध्या नगरी का अद्भुत वर्णन किया है। अयोध्या के लोगों कितने सदाचारी थे, कितने धार्मिक थे और कितने सुखी और संपन्न थे इसका वर्णन कविकुलगुरु कालिदास ने भी रघुवंशम में किया है। संस्कृत के अन्य महाकाव्यों उत्तररामचरित आदि में भी अयोध्या की भव्यता का वर्णन मिलता है।
वाल्मीकि रामायण में राम की अयोध्या का वर्णन :
वाल्मीकि रामायण के बालकांड, अयोध्याकांड, युद्धकांड और उत्तरकांड में कई स्थानों पर यहां के निवासियों का वर्णन किया है। वाल्मीकि के अनुसार अयोध्या के निवासी शुरु से ही अन्य नगरों के निवासियों की तुलना में ज्यादा धार्मिक थे। वाल्मीकि ने यहां के लोगों के उच्च धार्मिक आचरण पर कहा है –
सर्वे नराश्च नार्यश्च धर्मशीलाः सुसंयताः |
उदिताः शीलवृत्ताभ्यां महर्षय इवामलाः || १-६-९
अर्थात : यहां के सभी नर नारी धर्म से युक्त और संयमी थे।
वाल्मीकि कहते हैं कि यहां के पुरुषों का चरित्र उत्तम था-
कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरुषः क्वचित् |
द्रष्टुं शक्यमयोध्यायां नाविद्वान्न च नास्तिकः || १-६-८
अर्थात: अयोध्या में एक भी व्यक्ति न तो कामी था,न ही दुष्ट था और न ही नास्तिक था।
अयोध्या के वीर :
यहां के वीर पुरुषों के बारे में वाल्मीकि कहते हैं कि वो वीर के साथ साथ नैतिक भी थे –
ये च बाणैर्न विध्यन्ति विविक्तमपरापरम् |
शब्दवेध्यं च विततं लयुहस्ता विशारदाः || १-५-२०
अर्थात : “यहां के वीरों के बाणों से कोई भी निरपराध नहीं मारा जाता था। किसी भी निशस्त्र व्यक्ति, ऐसा व्यक्ति जिसकी संतान न हो,या फिर युदध से पीठ दिखाकर भाग रहा हो उस पर कोई भी अपने बाणों से वार नहीं करता था।”
अयोध्या में कोई चोरी नहीं होती थी :
वाल्मीकि जी कहते हैं कि –
नानाहिताग्निर्नायज्वा न क्षुद्रो वा न तस्करः |
कश्चिदासीदयोध्यायां न चावृत्तो न संकरः || १-६-१२
अर्थात : राम की अयोध्या में सभी अपने अपने यज्ञों को रोज करते थे और न ही कोई गरीब था और न ही कोई चोरी का कार्य करता था।
न नास्तिको नानृतको न कश्चिदबहुश्रुतः |
नासूयको न चाशक्तो नाविद्वान्विद्यते तदा || १-६-१४
अर्थात : न तो यहां कोई नास्तिक था और न ही कोई झूठ बोलता था , न ही कोई अपंग था और न ही कोई मूर्ख या अज्ञानी था
नाषडङ्गविदत्रासीन्नाव्रतो नासहस्रदः |
न दीनः क्षिप्तचित्तो वा व्यथितो वापि कश्चन ||१-६-१५
अर्थात : राम की अयोध्या में कोई भी व्यक्ति ऐसा नही था, जिसे सभी वेदांगो की जानकारी न हो, कोई ऐसा नहीं था जो प्रतिदिन यज्ञों को नहीं करता था। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो दान नहीं करता था।
भव्य थी अयोध्या नगरी :
वाल्मीकि ने राम अयोध्या की सुंदरता का भी भव्य वर्णन किया है। राजा दशरथ के वक्त अयोध्या की सड़कें चौड़ी थीं, जिस पर फूलों की सुगंध फैली रहती थी। कई मंजिलों वाली इमारतों का भी जिक्र मिलता है। राम की अयोध्या मे सभी प्रकार के रोजगार की व्यवस्था थी और कोई भी बेरोज़गार नहीं था। पूरी दुनिया से वहां व्यापारी आकर व्यापार करते थे और दुनिया के बेहतरीन घोड़े और हाथी दशरथ की सेना की शोभा बढाते थे।