रामायण सनातन हिंदू धर्म का एक प्राचीन ग्रंथ है, जिसमें श्रीराम के जीवन का चरित लिखा गया है। श्रीराम को विष्णु का अवतार माना जाता है और सारा संसार उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पूजता है।
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रामायण की संक्षिप्त कथा
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी और आज पूरे विश्व में हज़ारों भाषाओं में रामायण का अनुवाद हो चुका है। रामायण की संक्षिप्त कथा के अनुसार श्रीराम अयोध्या के राजकुमार थे जिन्हें अपने पिता के वचन का पालन करने के लिए वनवास जाना पड़ा जहाँ राक्षस रावण उनकी पत्नी का हरण कर लेता है और श्रीराम रावण का वध कर अपनी पत्नी सीता को मुक्त करते हैं।
रामायण की कथाओं में अंतर क्यों है?
रामायण की मूल कथा सारे विश्व में एक ही है, लेकिन इस कथा के चरित्रों और कथानक में समय के अनुसार बहुत सारे भेद हो गये हैं। राम कथा में कई अन्य कथाएं जोड़ी गई हैं और कई ऐसी कथाओं के स्वरुप बदल गए हैं । इस वजह से लोक मान्यताओं और दूसरे ग्रंथों में राम कथा को लेकर अनेक प्रकार की भ्रांतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
राम कथा को लेकर जो भ्रांतियाँ वर्तमान में पाई जाती हैं आज हम मूल वाल्मीकि रामायण से इसके निराकऱण का प्रयास कर रहे हैं। वाल्मीकि रामायण भगवान श्रीराम के जीवनकाल में ही लिखी गई थीं। इसके बाद महाभारत ग्रंथ में श्रीराम की कथा वन पर्व के ‘रामोपाख्यान’ अध्याय में मिलती है। वाल्मीकि रामायण के बाद महाभारत में दी गई राम कथा को सबसे प्राचीन माना जाता है।
महाभारत के बाद कवि कालिदास के द्वारा लिखे गए रघुवंशम में श्रीराम की कथा मिलती है। इसके बाद कवि भवभूति की महावीरचरितम में भी श्रीराम की कथा मिलती है। रामायण की कथा को आधार बना कर कवि मुरारि ने अनर्घराघवम लिखी ।
इसके अलावा बंगाली भाषा में कृतिवास ने और तमिल भाषा में कम्ब ने भी राम कथा लिखी है। तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की है। आज विश्व में 270 से भी ज्यादा राम कथा पर ग्रंथ मिलते हैं । इन पुस्तकों मे मूल कथा से इतर बहुत सारी अवांतर कथाएँ भी मिलती हैं।
मूल रामायण से इतर जो भी अवांतर कथाएं और भ्रम हैं उसका निराकऱण करने का प्रयास शुद्ध सनातन करने जा रहा है।
रामायण के लक्ष्मण शेषनाग के अवतार हैं?
ज्यादातर रामकथाओं मे श्रीराम को विष्णु का अवतार बताया गया है और उनके भाई लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार बताया गया है। मूल वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार नहीं बताया गया है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम, लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न के ये चारो भाई भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। ये सभी भगवान विष्णु की अलग- अलग कलाओं से उत्पन्न हुए हैं।
रामायण में सीता के स्वयंवर का सच
ज्यादातर राम कथाओं में सीता के विवाह के लिए उनके पिता जनक के द्वारा एक स्वयंवर के आयोजन का जिक्र आता है। इस स्वयंवर की शर्त ये थे कि जो भी भगवान शिव के पिनाक धनुष को उठा लेगा वही सीता से विवाह का अधिकारी होगा । स्वयंवर में आए सभी राजा इस महान धनुष को उठा नहीं पाते हैं । अंत में श्रीराम भगवान शिव के इस धनुष को उठा कर उसे तोड़ डालते हैं और सीता से उनका विवाह हो जाता है।
वाल्मीकि रामायण में सीता के विवाह के लिए किसी भी स्वयंवर के आयोजन का जिक्र नहीं आता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा जनक के मिथिला राज्य में प्रतिवर्ष एक धनुष यज्ञ का आयोजन होता था। विश्वामित्र उसी धनुष यज्ञ को दिखाने के लिए राम और लक्ष्मण को मिथिला ले जाते हैं। वहाँ विश्वामित्र के आग्रह पर श्रीराम उस शिव धनुष को उठा लेते हैं। जनक अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार श्रीराम से जानकी का विवाह कर देतें हैं।
रामायण में पुष्पक विमान का वर्णन
अधिकांश राम कथाओं के अनुसार रावण सीता का अपहरण कर अपने पुष्पक विमान से लंका ले जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण के पास पुष्पक विमान तो था लेकिन उसने सीता का हरण करने के लिए पुष्पक विमान का इस्तेमाल नहीं किया था। मूल कथा के अनुसार रावण सीता हरण के लिए अपने शिल्पकार से एक विमान का निर्माण करवाता है । इस विमानरुपी रथ में भी पुष्पक विमान की तरह आकाश में उड़ने की तकनीक थी।
जब रावण सीता का हरण कर उस विमान से उन्हें लंका ले जा रहा था तो रास्ते में गीध जटायु के साथ उसका युद्ध होता है। जटायु उस विमान के टुकड़े कर देते हैं और आखिर में रावण को आकाशमार्ग से सीता को ले जाना पड़ता है।
रामायण में शबरी की कथा का सच
अधिकांश राम कथाओं में जब श्रीराम शबरी के आश्रम जाते हैं तो वहाँ शबरी उन्हें बेर खिलाती हैं। कुछ राम कथाओं के अनुसार शबरी राम को जूठे बेर खिलाती है। लक्ष्मण उन जूठे बेरों के खाने से इंकार कर उन्हें जमीन पर फेंक देते हैं। यही जूठे बेर बाद में संजीवनी बूटी बन जाते हैं। जब लक्ष्मण को शक्तिबाण लगता है तो हनुमान इन्ही जूठे बेरों से बनी संजीवनी बूटी को लेकर आते हैं और लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर होती है।
मूल वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामचरितमानस दोनों में ही ये कथा नहीं है। राम शबरी के आश्रम जरुर जाते हैं लेकिन वहाँ शबरी उन्हें सिर्फ जंगली फल खाने के लिए देती हैं। बेर खिलाने का कोई जिक्र नहीं है।
इसके अलावा संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान हिमालय जाते हैं जबकि शबरी का आश्रम आज के दक्षिण भारत में था। इस तर्क से भी शबरी के बेरों के संजीवनी बूटी में बदलने की कथा सत्य नहीं लगती है।
रामायण में वालि के वरदान की कथा
कई राम कथाओं और लोक कथाओं में वानरराज वालि को मिले एक वरदान की कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि वालि जिस भी शत्रु के साथ युद्ध करने जाता था उस शत्रु की आधी शक्ति वालि के शरीर में समा जाती थी और वालि उस शत्रु को अपनी बढ़ी हुई शक्ति से पराजित कर देता था। लोककथाओं के अनुसार वालि को मिले इसी वरदान की वजह से श्रीराम ने वालि का वध छिप कर किया था।
मूल वाल्मीकि रामायण में वालि को मिले ऐसे किसी भी वरदान की कथा नहीं है। ऐसे वरदान की कथा राजा नहुष के बारे में जरुर मिलती है। राजा नहुष को ये वरदान था कि जो भी उसकी आँखों में देखता था उस व्यक्ति की आधी शक्ति नहुष के अंदर समा जाती थी। राजा नहुष पहले मनुष्य थे जिन्हें इंद्र का सिंहासन मिला था। नहुष की कथा महाभारत और कई अन्य पुराणों में मिलती है।
रामायण में रामसेतु की कथा
विश्व की सारी राम कथाओं में श्रीराम के द्वारा लंका विजय के पहले समुद्र पर एक पुल बनाने की बात आती है। कई कथाओं के अनुसार राम की सेना में नल और नील नामक दो वानर भाई थे ।रामचरितमानस के अनुसार उन्हें एक ऋषि के द्वारा ये वरदान मिला था कि वो जिस भी पत्थर को समुद्र में डालेंगे वो पत्थर समुद्र के जल में डूबेगा नहीं । इस प्रकार नल और नील ने समुद्र पर सेतु बनाया ।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वानर नल ने समुद्र पर सेतु बनाया था। वानर नल भगवान विश्वकर्मा का पुत्र था और उसे उसके पिता ने ये वरदान दिया था कि तुम मेरे समान ही शिल्पकर्म में दक्ष हो जाओगे।
मूल वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल के पास ऐसा कोई वरदान नहीं था कि उसके स्पर्श करने से पत्थर समुद्र में डूबेगा नहीं और तैर जाएगा। नल ने अपनी शिल्पकर्म की दक्षता की वजह से इस पुल का निर्माण किया था। कुछ राम कथाओं के अनुसार श्रीराम के हाथों के स्पर्श से पत्थर डूबता नहीं था और श्रीराम की इस शक्ति की वजह से ही नल और नील ने समुद्र पर ऐसा सेतु बनाया था।
रामायण में लक्ष्मण को शक्तिबाण लगने का सच
विश्व की अधिकांश रामकथाओं के अनुसार लक्ष्मण को मेघनाद ने शक्तिबाण मारा था जिसके प्रहार से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे और उनकी मूर्च्छा को दूर करने के लिए हनुमान हिमालय से संजीवनी बूटी लाए थे।
मूल वाल्मीकि रामायण की कथा के अनुसार मेघनाद ने नहीं बल्कि रावण ने लक्ष्मण को शक्तिबाण मारा था जिससे वो मूर्च्छित हो गए थे और हनुमान जी हिमालय से संजीवनी बूटी लाने गए थे।
रावण की नाभि में अमृत कुंड होने का सच
बहुत सारी राम कथाओं के अनुसार राक्षस रावण की नाभि में अमृत कुंड था । इस अमृत कुंड की वजह से ही उसे कोई भी मार नहीं सकता था। श्रीराम जब रावण को मारने का प्रयास करते थे तो वो बार- बार असफल हो जाते थे।
आखिर में विभीषण राम को रावण की नाभि में बाण मारने का आग्रह करता है ताकि रावण की नाभि का अमृत सूख जाए। श्रीराम रावण की नाभि में बाण मारते हैं और रावण की नाभि में स्थित अमृत सूख जाता है और रावण का वध हो जाता है।
मूल वाल्मीकि रामायण में रावण की नाभि में अमृत होने की कोई कथा नहीं है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इंद्र का सारथि मातलि श्रीराम से रावण के उपर सूर्य का दिया हुआ ब्रह्मास्त्र चलाने का आग्रह करता है । श्रीराम सूर्य के दिये गए ब्रह्मास्त्र से रावण का वध कर देते हैं।