सनातन धर्म के शाक्त संप्रदाय में माँ काली को आद्या शक्ति का सबसे आरंभिक स्वरुप माना गया है । माँ काली के कई स्वरुपों की पूजा बंगाल , बिहार और नेपाल सहित देश के अलग अलग भागों में की जाती रही है। मां काली किस लोक में वास करती हैं? माँ काली क्या भगवान शिव की पत्नी है? माँ काली क्या माता पार्वती का ही एक दूसरा स्वरुप हैं? इनको लेकर कई सवाल उठाए जाते रहे हैं।
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माँ काली के कितने स्वरुप हैं?
कई मूर्तियों और तस्वीरों में माँ काली को भगवान शिव के उपर आरुढ़ दिखाया गया है । कई मूर्तियों में उन्हें दशपदी या दस पैरों वाली भी दिखाया गया है। माँ काली के विभिन्न स्वरुपों में दक्षिण काली , श्मशान काली, श्यामा काली, भद्रकाली . कालिका देवी और दसमहाविद्या की प्रथम महाविद्य़ा देवी काली प्रमुख हैं। क्या ये सब अलग अलग देवियां हैं या फिर किसी एक ही शक्ति के विभिन्न रुप हैं?
माँ काली ही आद्या शक्ति हैं?
माँ काली को काल का स्त्री रुप माना जाता है । जो काल पर विराजित हों वही माँ काली हैं। काल या महाकाल भगवान शिव को कहा जाता है और भगवान शिव ही संहार के देवता माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो काल के वश में भी न हो वो काली दे सकती हैं। अर्थात जो आपके भाग्य के अनुसार नहीं प्राप्त होने वाला हो वो भी मां काली की कृपा से प्राप्त हो सकता है ।
माँ काली इसीलिए महाकाल के उपर विराज रही हैं। ऐसी मान्यता है कि शक्ति के बिना शिव भी शव के समान हैं। जब तक शिव और शक्ति संयुक्त नहीं होते हैं संसार का चक्र शुरु नहीं हो सकता है।
माँ काली का मूल स्वरुप क्या है?
श्रीदुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में हमें एक ऐसी शक्ति का आभास होता है जो ब्रह्मा , विष्णु और शिव से भी पूर्व हैं और वही सारी सृष्टि का मूल हैं। श्रीदुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में कथा आती है कि संसार के एक लय में चलने की वजह से आद्या शक्ति योगमाया भगवान विष्णु को योगनिद्रा में ले जाकर सारे संसार के पालन कार्य को अपने हाथ में ले लेती हैं।
भगवान विष्णु जब योगमाया आद्या शक्ति के अधीन योगनिद्रा में चले जाते हैं तो उनके कान के मैल से दो महाशक्तिशाली दैत्यों का आविर्भाव होता है । ये आदि दैत्य मधु और कैटभ थे। मधु और कैटभ अपने जन्म के बाद ही भगवान विष्णु के नाभिकमल पर स्थित ब्रह्मा जी का वध करने के लिए दौड़ पड़ते हैं।
मधु कैटभ को देख कर ब्रहमा जी आद्या शक्ति योगमाया देवी की स्तुति करने लगते हैं। ब्रह्मा की स्तुति से योगमाया देवी प्रसन्न हो जाती हैं और वो विष्णु के वक्ष , नेत्रों, नासिका और बाहुओं से निकल कर दसपदी काली के रुप में प्रगट हो जाती हैं।
ब्रह्मा उन दसपदी मां काली की स्तुति करते हैं और उनसे भगवान विष्णु को योगनिद्रा से जगाकर उन्हें मधु कैटभ का वध कराने का आग्रह करते हैं। योगमाया देवी की प्रेरणा से भगवान विष्णु मधु और कैटभ का वध करते हैं।
यही आद्या शक्ति का सबसे आरंभिक रुप है जो दसपदी काली के रुप में अभिव्यक्त होता है। दसपदी काली मधु कैटभ के वध के पश्चात अंतर्धान हो जाती हैं। वो कहां जाती हैं इसका कोई वर्णन नहीं है।
कालिका देवी का आविर्भाव
श्रीदुर्गा सप्तशती के उत्तम चरित्र के अध्यायों में कथा आती है कि जब शुम्भ और निशुम्भ ने सभी देवताओं को पराजित कर तीनों लोको पर अधिकार कर लिया तो देवताओं ने एक बार फिर से आद्याशक्ति योगमाया की स्तुति शुरु की । उस वक्त माता पार्वती के शरीर से एक देवी का आविर्भाव हुआ जिन्हें कौशिकी या चंडिका देवी कहा गया ।
माता पार्वती के शरीर से कौशिकी देवी के निकलते ही उनका शरीर काला पड़ गया और वो कालिका देवी के रुप में विख्यात हो गईं। माता पार्वती का ये स्वरुप कालिका देवी के रुप में विख्यात हुआ और वो शिव की संगिनी बन कर हिमालय में वास करने लगीं। ये और कोई नहीं बल्कि माता पार्वती का ही एक दूसरा स्वरुप था।
शुम्भ निशुम्भ के सेना में चण्ड-मुण्ड और रक्तबीज के संहार में समय लगने पर चंडिका देवी क्रोधित हो गईं औऱ उनके नेत्रों से आद्या शक्ति महाकाली के रुप मे प्रगट हुईं। इन महाकाली ने जब चण्ड और मुण्ड को मारा तो वो चामुण्डा के नाम से जगत में विख्यात हुईं।
इन्हीं महाकाली ने अपने विकराल रुप को धारण कर रक्तबीज का भी संहार किया और वो रक्तबीज के शरीर का सारा रक्त पी गईं। महाकाली के इस विकराल स्वरुप की व्याख्या श्रीदुर्गा सप्तशती में विस्तार पूर्वक की गई है।
भद्रकाली का आविर्भाव
आद्या शक्ति के एक और स्वरुप का वर्णन आता हैं जिन्हें भद्रकाली के रुप में जाना जाता है । कथा है कि जब भगवान शिव की अर्धांगिनी माता सती अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में योगाग्नि से भष्म हो गईं तो भगवान शिव प्रचंड क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी दो जटाओं को पृथ्वी पर पटका । इससे एक जटा से वीरभद्र प्रगट हुआ और दूसरी जटा से भद्रकाली प्रगट हुई।
आद्या शक्ति से भद्रकाली स्वरुप ने वीरभद्र के साथ प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया। इसके बाद माँ भद्रकाली अंतर्धान हो गईं ।
दशमहाविद्या की प्रथम शक्ति माँ काली
भगवान शिव की पत्नी माता सती के शरीर से जिन दस महाविद्याओं का आविर्भाव हुआ है उनमें माँ काली प्रथम महाविद्या हैं। कथा है कि एक बार भगवान शिव माता सती से नाराज़ होकर जाने लगे तो माता सती ने दसो दिशाओं में खुद को दस विभिन्न स्वरुपों में प्रगट कर लिया। इन दस स्वरुपो का तांत्रिक साधना में बहुत महत्व है।
माँ काली ही माँ तारा हैं
माँ तारा दसमहाविद्याओं में एक महाविद्या मानी जाती हैं और आद्या शक्ति के एक स्वतंत्र स्वरुप के रुप में उनकी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि माँ तारा का आविर्भाव भी माता सती के शरीर से ही हुआ है। लेकिन कई ग्रंथों में माँ काली के करुण स्वरुप को माँ तारा कहा जाता है।
इसको लेकर दो प्रकार की कथाएं आती हैं। एक कथा ये है कि जब समुद्र मंथन के दौरान हलाहल अग्नि से कालकूट विष निकला तो भगवान शिव ने उसे पी लिया उस वक्त भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती ने भगवान शिव के गले को अपने हाथों से पकड़ लिया ताकि ये विष भगवान शिव के कंठ से नीचे न जाए। भगवान शिव का कंठ विष के प्रभाव से नीला पड़ गया औऱ वो संसार में नीलकंठ के रुप में विख्यात हो गए।
लेकिन भगवान शिव के कंठ में विष के रहने से उनके गले में जलन होनी शुरु हो गई, ऐसे में आद्य़ा शक्ति माँ तारा के स्वरुप में प्रगट हुईं और उन्होंने भगवान शिव को स्तनपान कराकर उनके विष को खत्म कर दिया।
दूसरी कथा ये भी आती है कि जब माँ काली ने रक्तबीज का संहार किया तो महाकाली इतने क्रोध में भर गईं कि वो सृष्टि का ही संहार करने लगीं। तब ऐसे में भगवान शिव पहले तो माँ काली के पैरों को नीचे आ गए जिससे उनका क्रोध खत्म हो सके । उसके बाद वो एक बच्चे के रुप में माँ काली के सामने आ गए। बालक रुप में भगवान शिव को देखकर माँ काली का क्रोध शांत हो गया और वो उन्हें स्तनपान कराने लगीं। माँ काली के इस शांत स्वरुप को ही माँ तारा का नाम दिया गया।
दक्षिणकाली ही आद्या शक्ति हैं
उपर बताये गए वर्णनों में हमने बार बार आद्या शक्ति के दसपदी काली, कालिका देवी, महाविद्या काली और भद्रकाली आदि स्वरुपों को देखा। लेकिन आद्याशक्ति का खुद का स्वरुप कैसा है इसको जानने के लिए हमें दक्षिणकाली की मूर्ति को देखना पड़ेगा।
दक्षिणकाली को ही आद्याशक्ति का मूल स्वरुप माना जाता है। आद्या शक्ति इस स्वरुप में भगवान शिव के उपर अपने दाहिने पैर को रख कर खड़ी हैं। उनके चार हाथ हैं । उनके दो हाथों में एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में हैं और एक हाथ अभय की मुद्रा में हैं।
माँ काली के बायें हाथों में एक हाथ में खड्ग हैं औऱ दूसरे एक राक्षस का सिर है। दक्षिण काली ने राक्षसों के सिरों की माला पहन रखी है और उनकी लाल जीभ बाहर निकली हुई है। माँ दक्षिणकाली के चेहरे पर रहस्यमयी और करुणामयी मुस्कान है।
माँ दक्षिणकाली की वर और अभय मुद्रा जहां सृष्टि के निर्माण और पालन को बताती हैं वहीं उनके दोनों बायें हाथों से उनकी संहारिणी शक्ति का पता चलता है। माँ काली के सिर्फ इसी स्वरुप की पूजा घरों के अंदर की जाती है और कोई भी भक्तिभाव से उनकी अराधना कर उनकी कृपा प्राप्त कर सकता है।