Arjun

महाभारत का सबसे महान योद्धा अर्जुन|Mahabharat ke Sabse Mahan Yodha Arjun

अर्जुन महाभारत में एक महान योद्धा के रुप में दिखाये गए हैं। अर्जुन को महाभारत में ‘नर’ रुप विष्णु का अवतार भी माना गया है। महाभारत में कई स्थानों पर कृष्ण को नारायण और अर्जुन को उनके सखा ‘नर’ के रुप में दिखाया गया है ।

कौन हैं नर और नारायण ( Who is Nar and Narayan )

महाभारत और श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान विष्णु ने धर्म और तप की स्थापना के लिए ‘नर’ और नारायण के रुप में अवतार लिया और आज भी वो बद्रिकाश्रम में तपस्या में लीन हैं। ‘नर’ और ‘नारायण’ ने धर्म और उनकी पत्नी रुचि के गर्भ से जन्म लिया था। श्रीकृष्ण को नारायण का ही अवतार माना जाता है। जबकि अर्जुन को ‘नर’ अवतार की संज्ञा दी जाती है। विष्णु के नित्य सखा और अवतार ‘नर’ ही समुद्र मंथन के पश्चात प्रगट हुई अमृत की रक्षा भी करते हैं।

अर्जुन के जन्म की कथा ( Arjun ke janm ki katha )

महाभारत में अर्जुन को श्रीकृष्ण के बाद सबसे महान व्यक्तित्व माना जाता रहा है । महाभारत के ‘आदि पर्व’ में अर्जुन के जन्म की कथा मिलती है । ‘आदि पर्व’ में यह कथा आती है कि पांडवों की माता कुंती जब अविवाहित थी तब ऋषि दुर्वासा ने उन्हें एक मंत्र प्रदान किया था । इस मंत्र के अनुसार वो जिस भी देवता का आह्वान करेंगी वो उनके सामने प्रगट होकर उन्हें पुत्र प्रदान करेंगे।

कुंती जब अविवाहित ही थीं तो उन्होंने इस मंत्र का प्रयोग कर भगवान सूर्य का आह्वान किया था। इससे उन्हें जिस पुत्र की प्राप्ति हुई थी वो भविष्य में कर्ण के नाम से विख्यात हुआ। हालांकि समाज के भय से कर्ण के जन्म लेते ही कुंती ने उसका त्याग कर दिया था। कुंती का विवाह पांडु से हुआ। लेकिन पांडु को एक ऋषि ने शाप दे दिया कि वो संतान उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, तो कुंती ने एक बार फिर से इस मंत्र का उपयोग कर धर्मराज से युधिष्ठिर को और पवनदेव से भीम को उत्पन्न किया।

अर्जुन सभी पांडवों में सबसे खास थे

युधिष्ठिर और भीम के जन्म के बाद भी पांडु एक ऐसा पुत्र चाहते थे जो न सिर्फ मानवों बल्कि देवताओं, दैत्यों और दानवों को भी पराजित कर सके। इसके लिए उन्होंने स्वयं इंद्र की तपस्या शुरु की। ‘संवत्सर व्रत’ रुपी एक वर्ष की तपस्या से इंद्र प्रसन्न हुए और ये वरदान दिया कि कुंती से ऐसा पुत्र उत्पन्न होगा जो सभी देवताओं, दानवों, दैत्यों और गंधर्वों से भी ज्यादा शक्तिशाली होगा। इसके बाद कुंती ने इंद्र का आह्वान किया और इंद्र ने अपने पुत्र के रुप मे अर्जुन को जन्म दिया

अर्जुन कितना शक्तिशाली थे

अर्जुन का जब जन्म हुआ तो उसे देखने और आशीर्वाद देने के लिए 12 आदित्य , 11 रुद्र, सप्तर्षि सभी आए। उर्वशी, घृताचि, मेनका, रंभा आदि अप्सराओं ने अर्जुन के जन्म लेते ही खुशी में नृत्य करना शुरु कर दिया। ऐसा किसी भी पांडव के जन्म के दौरान नहीं हुआ। अर्जुन के जन्म के बाद एक आकाशवाणी भी हुई । इस आकाशाणी के द्वारा कहा गया कि ये बालक कार्तवीर्य अर्जुन के समान तेजस्वी, भगवान शिव के समान पराक्रमी, इंद्र के समान अजेय, परशुराम के समान योद्धा, विष्णु के समान पराक्रमी, श्रेष्ठ और यशस्वी होगा।

अर्जुन सबसे शक्तिशाली योद्धा थे

अर्जुन को महाभारत का सबसे पराक्रमी और अपराजेय योद्धा माना जाता है। अर्जुन इकलौते योद्धा हैं जिन्होंने खाण्डवप्रस्थ में इंद्र, कार्तिकेय और देवताओं की समस्त सेना को पराजित किया था। अर्जुन महाभारत के इकलौते योद्धा हैं जिन्होंने किरात के वेश में आए भगवान शंकर के साथ युद्ध कर उन्हें संतुष्ट किया था। अर्जुन कई मायनों में इंद्र से भी ज्यादा शक्तिशाली थे। जिन निवाचकवच दैत्यों और कालकेय राक्षसों को इंद्र भी पराजित नहीं कर पाए , अर्जुन ने उन निवाचकवच दैत्यों और कालकेय राक्षसों को पराजित किया था। विराट के युद्ध में अकेले अर्जुन ने भीष्म, द्रोण , कृपाचार्य , कर्ण , दुर्योधन की सेना को पराजित किया था। जिन द्रुपद की सेना के सामने कौरव और कर्ण पराजित हो गए थे, उस द्रुपद को अर्जुन ने ही बंदी बना लिया था। महाभारत के ‘वन पर्व’ में कौरवों की सेना को कर्ण सहित गंधर्व चित्ररथ ने पराजित कर दुर्योधन को उसके परिवार सहित बंदी बना लिया था, उस गंधर्व चित्ररथ को भी अर्जुन ने पराजित किया था।

कर्ण और अर्जुन की तुलना

अर्जुन महाभारत के एकमात्र योद्धा हैं जो कभी भी किसी भी युद्ध में पराजित नहीं हुए। कर्ण जिसे महाभारत का महान योद्धा माना जाता है , वो अभिमन्यु और भीम से भी पराजित हुआ था। कर्ण को द्रुपद , सात्यकि आदि ने भी पराजित किया था। अर्जुन ने कुल मिलाकर पांच बार कर्ण को पराजित किया था।  

अर्जुन दस नामों से प्रसिद्ध थे

महाभारत के विराट पर्व से पता चलता है कि अर्जुन के 9 और भी नाम थे जिनसे उनकी प्रसिद्धि थी। विराट पर्व में जब विराट नगर पर कौरवों की सेना आक्रमण करती है, तो उस वक्त अर्जुन अन्य पांडव भाइयों के साथ अज्ञातवास में थे। अर्जुन उस वक्त एक नंपुसक ‘वृहन्नला’ के रुप में वहां रह रहे थे। लेकिन जब राज्य पर हमला हो जाता है तो वो राजकुमार ‘उत्तर’ (जिसका मूल नाम भूमिंजय था) के सारथि बन कर युद्ध करने जाते हैं। अर्जुन ‘उत्तर’ को भयभीत देखकर बताते हैं कि वो ‘वृहन्नला’ नहीं बल्कि अर्जुन हैं। ‘उत्तर’ को ये विश्वास नहीं होता है । वो पूछता है कि अगर आप अर्जुन हैं तो अपने सारे दस नामों का वर्णन मेरे सामने कीजिए तब अर्जुन उत्तर को अपने सारे नाम बताते हैं।

  • अर्जुन के कुल दस नाम थे। इनमें एक नाम ‘कृष्ण ‘भी था क्योंकि उनके शरीर का रंग श्याम या कृष्ण था । यह नाम उन्हें उनके पिता पांडु ने दिया था। पांडु अर्जुन को ‘कृष्ण’ कह कर ही पुकारते थे।
  • अर्जुन के अन्य नाम फाल्गुन, जिष्णु, किरीटी, श्वेतवाहन, विजय, बीभत्सु , सव्यसाची और धनंजय हैं।सभी नामों के रखने की अलग- अलग वजहें थी।
  • अर्जुन का ‘फाल्गुन’ नाम इसलिए पड़ा क्योंकि अर्जुन का जन्म उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था।
  • अर्जुन को श्वेतवाहन भी कहा जाता था। ‘श्वेतवाहन’ इसलिए क्योंकि अर्जुन श्वेत अश्वों वाले रथ पर चलते थे।
  • अर्जुन का एक नाम ‘विजय’ भी था। ‘विजय’ नाम अर्जुन का इसलिए पड़ा क्योंकि आज तक वो किसी भी युद्ध में पराजित नहीं हुए और बिना शत्रु को पराजित किए वो युद्ध क्षेत्र से कभी नहीं लौटते थे।
  • अर्जुन विश्व मे धनंजय के नाम से भी प्रसिद्ध थे। ‘धनंजय’ वो इसलिए कहे जाते थे क्योंकि वो जिन भी देशों को जीतते वो कर के रुप में धन लेकर लौट जाते थे और धन के बीच ही स्थित रहते थे।
  • अर्जुन को ‘किरीटी’ के नाम से भी जाना जाता था। क्योंकि उनके पिता इंद्र ने उन्हें एक किरीट या मुकुट उपहार में दिया था। यह उपहार उनके पिता इंद्र ने तब दिया था जब अर्जुन निवातकवचों से युद्ध करने के लिए प्रस्थान कर रहे थे।
  • अर्जुन का एक नाम ‘बीभत्सु’ भी था। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि अर्जुन युद्ध के दौरान कोई भी ऐसा कार्य नहीं करते थे जो विभत्स या घृणित होता था।
  • अर्जुन को ‘सव्यसाची’ इसलिए नाम दिया गया क्योंकि वो दोनों ही हाथों से गांडीव धनुष की डोरी खींचने में समर्थ थे।
  • अर्जुन का एक नाम ‘जिष्णु’ भी था। जिष्णु का अर्थ होता है जिसे पकड़ना और तिरष्कृत करना असंभव था। अर्जुन को कोई भी पकड़ नहीं सकता था और न ही उसे कोई अपमानित कर सकता था।

अर्जुन नाम का अर्थ क्या है (Arjun naam ka arth kya hota hai)

अर्जुन शब्द के तीन अर्थ महाभारत के विराट पर्व में बताये गये हैं। दीप्ति, ऋजुता( समता) और धवल( शुद्ध) । अर्जुन सभी के प्रति समभाव रखते थे और हमेशा शुद्ध कर्म करते थे। अर्जुन हमेशा कौरवों के प्रति भी समान भाव रखते थे । कौरव उनके दुश्मन थे इसके बावजूद वो उनका भला चाहते थे। इसीलिए श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन का विषाद और मोह अपने दुश्मन भाइयों और अपने कुटुंबों के प्रति समान भाव से सामने आता है । वो ये भी नहीं चाहते कि उनके दुश्मन कौरव भी युद्ध में मारे जाएं।

क्या अर्जुन का नाम ‘पार्थ’ भी है

 पार्थ संबोधन अर्जुन के लिए कई बार महाभारत और श्रीमद्भगवद्गीता में आया है । लेकिन सिर्फ अर्जुन को ही पार्थ के संबोधन से नहीं पुकारा जाता था। ‘पार्थ’ सभी पांडवो के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला संबोधन था। पांडवों की माता कुंती का मूल नाम पृथा था। इसलिए पांडव पार्थ भी कहे जाते थे।

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