राम ने अयोध्या किसको दे दी थी? जब राम अपने धाम को वापस चले गए तो लव और कुश को अयोध्या न दे कर हनुमान जी को अयोध्या का राजा बना दिया। राम ने क्यों अयोध्या हनुमान को दे दी । क्या राम के जाने के बाद हनुमान ने ही अयोध्या का राज- काज संभाला ? क्या है हनुमान के अयोध्या के राजा बनने का सच? अयोध्या के राजा हनुमान के राम राज्य की कथा क्या है? क्यों हनुमान के बिना अधूरी है अयोध्या?
शुद्ध सनातन हिंदू धर्म में हनुमान जी को पृथ्वी पर सबसे जाग्रत और अजर-अमर देवता के रुप में सबसे प्रमुख स्थान हासिल है । राम भक्त हनुमान आज भी जीवित और चिरंजीवी हैं । कहा जाता है कि जब तक श्रीराम का नाम पृथ्वी के किसी भी कोने में लिया जाएगा, हनुमान जी जीवित रहेंगे । लेकिन सवाल उठता है कि महावीर हनुमान जी का निवास स्थान कहां है ? श्रीराम के साकेतधाम जाने के बाद हनुमान जी कहां रहने लगें और अयोध्या का क्या हुआ ?
अयोध्या के राजा हनुमान अब गंधमादन पर्वत पर रहते हैं :
महाभारत के ‘वन पर्व’ के अध्ययन से पता चलता है कि हनुमान जी का निवास स्थान गंधमादन पर्वत के आसपास है। महाभारत के ‘वनपर्व’ के अध्याय 146-149 में कथा मिलती है कि, युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव गंधमादन पर्वत के पास वनवास के दौरान पहुंचते हैं। वहां वो अर्जुन का इंतज़ार कर रहे थे ।अर्जुन उस वक्त इंद्र के दरबार में स्वर्ग में शस्त्रों की शिक्षा लेने के लिए गये थे । तभी द्रौपदी के पास एक सहस्त्रदल कमल हवा से उड़ता हुआ आ जाता है । द्रौपदी भीम को और भी ऐसे फूल लाने के लिए भेजती है जहां रास्ते मे भीमसेन की मुलाकात महावीर हनुमान जी से होती है।
हनुमान जी बताते हैं कि “जब ग्यारह हज़ार वर्षों तक श्रीराम अयोध्या में शासन करने के बाद अपने परमधाम को चले जाते हैं, तो माता सीता की कृपा से हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर निवास करने लगते हैं।कहा जाता है कि गंधमादन पर्वत का क्षेत्र कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित था । वहां का शासन कुबेर के द्वारा चलाया जाता था । इसी मार्ग से स्वर्ग जाने का गुप्त रास्ता शुरु होता था । हनुमान जी ने जब भीमसेन को आते देखा तब उन्हें लगा कि कहीं भीम स्वर्ग के रास्ते पर न चले जाएं, इसलिए महावीर हनुमान जी ने भीमसेन का रास्ता रोक दिया ।
जब तक है राम नाम अमर हैं हनुमान :
हनुमान जी भीमसेन को यह भी बताते हैं कि किस प्रकार उन्हें श्रीराम के वरदान से चिंरजीवी होने का आशीर्वाद प्राप्त है । हनुमान बताते हैं कि जब राम ने अयोध्या का शासन संभाला, तब महावीर हनुमान जी ने उनसे अपने चिरंजीवी होने का वरदान मांगा –
ततः प्रतिष्ठितो राज्ये रामो नृपतिसत्तमः ।
वरं मया याचितोSसौ रामो राजीवलोचनः ।।
यावद् राम कथेयं ते भवेल्लोकेषु शत्रुहन् ।
ताव्ज्जीवेयमित्येवं तथास्त्विति च सोSब्रवीत् ।।
महाभारत, वनपर्व अध्याय 148
अर्थात – “इसके बाद शत्रुओं को अपने वश में करने वाले राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम अवध के राजसिंहासन पर आसीन हो, उस अजेय अयोध्यापुरी में रहने लगे । उस समय मैंने कमलनयन श्रीराम से यह वरदान मांगा कि शत्रुसूदन ! जब तक आपकी यह कथा संसार में प्रचलित रहेगी, तब तक मैं अवश्य ही जीवित रहूं। भगवान श्री राम ने तथास्तु कह कर मेरी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली ।”
हनुमान जी को माता सीता ने भी अजर अमर रहने का वरदान दिया है –
अजर अमर गुननिधि सुत होहु ।
करहुं बहुत रघुनायक छोहूं ।।
रामचरितमानस , सुंदरकांड
महाभारत में हनुमान बताते हैं कि सीताजी की कृपा से उन्हें गंधमादन पर्वत पर सभी दिव्य भोग प्राप्त होते रहते हैं –
राम के राज्य का विभाजन :
कालिदास के ‘रघुवंशम’ और कई अन्य ग्रंथों के मुताबिक श्रीराम ने अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्रों और अपने भाइयों के पुत्रों के बीच अपने राज्य का बंटवारा निश्चित कर दिया था । कालिदास के ‘रघुवंशम’ की कथा के अनुसार श्रीराम के बाद उनके और उनके भाइयों के पुत्रों ने अयोध्या का परित्याग कर दिया था । उन सभी ने अयोध्या का परित्याग क्यों किया था? इसका कोई कारण नहीं बताया गया है ।
कहा जाता है कि श्रीराम के पुत्र कुश ने कुशावती और लव ने शरावती ( लाहौर) को अपनी राजधानी बनाया । लक्ष्मण के पुत्रों ने करावती को अपना केंद्र बनाया तो भरत के पुत्र पुष्कल ने पुष्करावती ( पेशावर) को अपनी राजधानी बनाया । शत्रुघ्न के पुत्रों ने मथुरा के अपने शासन का केंद्र बनाया । इस प्रकार राम ने अपने राज्य का विभाजन तो कर दिया लेकिन अयोध्या किसी को भी नहीं सौंपी।
राम के पुत्र कुश ने फिर बसाई अयोध्या :
कालिदास के “रघुवंशम’ के अनुसार एक बार कुश के स्वप्न में अयोध्या नगरी एक स्त्री का रुप धारण करके आई। देवी ने कुश से अयोध्या वापस चलने को कहा । देवी ने कहा कि श्रीराम के जाने के बाद अयोध्या वीरान हो गई हैं । श्रीराम के पुत्र कुश अयोध्या वापस लौटते हैं और इसके बाद वो फिर से अयोध्या को अपनी राजधानी बनाते हैं। इसके बाद अयोध्या पर एक बार फिर से श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज शासन करने लगते हैं ।
अयोध्या के राजा हनुमान :
कहा जाता है कि जब श्रीराम ने अपने राज्य का बंटवारा अपने पुत्रों और अपने भाइयों के पुत्रों के बीच कर दिया, तब उन्होंने हनुमान जी को अयोध्या की रक्षा और शासन का दायित्व सौंप दिया । श्रीराम के महल के सामने के द्वार पर हनुमान जी रहने लगे और वहीं से प्रभु श्रीराम के नाम से शासन कार्य देखने लगे औऱ नगर की रक्षा करने लगे । हनुमान जी तब से ही श्रीराम जन्मभूमि और उनके द्वार रामकोट की रक्षा करने लगे । तुलसीदास जी ने भी हनुमान चालीसा में कहा है –
राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे
अर्थात : हनुमान जी ही श्रीराम के महल के द्वार ( रामकोट ) के रक्षक हैं और उनकी आज्ञा के बिना कोई भी अयोध्या में प्रवेश नहीं कर सकता है ।
हनुमानगढ़ी से शासन करते हैं हनुमान :
कहा जाता है कि हनुमान जी रामकोट, श्री रामजन्मभूमि की रक्षा और अयोध्या का शासन कार्य हनुमानगढ़ी मंदिर से करते हैं। हनुमानगढ़ी मंदिर में हनुमान जी की आज भी एक दिव्य प्रतिमा है । यह मंदिर राजद्वार के सामने ही स्थित है । सभी भक्त अयोध्या आने के बाद सबसे पहले हनुमान जी का ही दर्शन करते हैं। यहां हनुमान जी बाल रुप में अपनी माता अंजना के साथ स्थित है । हनुमान यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं स्वयं पूरी करते हैं।
हनुमान की आज्ञा से होते हैं सारे काम :
मान्यता है कि हनुमान जी की आज्ञा के बिना यहां कोई भी कुछ भी नहीं कर सकता है । कहा जाता है कि सरयू में स्नान कर अपने पाप धोने के पूर्व भी महावीर हनुमान जी की आज्ञा अनिवार्य है । कथाओं के अनुसार श्रीराम ने महावीर हनुमान जी को अयोध्या का राजा बनाते वक्त यह वरदान दिया था कि बिना उनकी पूजा किये उसे श्रीराम के दर्शन का पुण्य प्राप्त नहीं होगा । इसके बाद से ही हनुमान जी की अनुमति लेने के लिए भक्त पहले हनुमानगढ़ी आते हैं और इसके बाद ही अयोध्या नगरी का भ्रमण करते हैं ।
मुस्लिम भी हैं हनुमान भक्त :
मध्यकाल में जब मुगल साम्राज्य बिखरने लगा तो एक शिया और ईरान मूल के व्यक्ति सादात अली खान ने 1722 ईसवी में अवध को अपना राज्य बनाया औऱ अयोध्या के पास फैजाबाद को अपनी राजधानी बनाया । फैजाबाद दरअसल अयोध्या का ही विस्तार है । फैजाबाद शहर के नाम का अर्थ भी यही है कि वह शहर जहां सब लोग बराबर हों। इस प्रकार अवध के नवाबों ने भी श्रीराम के राम राज्य की बराबरी की संकल्पना पर अपने राज्य की स्थापना की थी
मुस्लिम शासक को मिला हनुमान जी का आशीर्वाद :
एक बार मुस्लिम नवाब मंसूर अली का पुत्र इतना बीमार हो गया कि उसके दिल की धड़कनें भी बंद हो गई थीं । ऐसे में नवाब ने हनुमान जी की शरण ली और हनुमानगढ़ी में जाकर प्रार्थना की । उसका पुत्र आश्चर्यजनक रुप से फिर से जीवित हो उठा और इसके बाद मंसूर अली खान ने महावीर हनुमान जी की भक्ति करनी शुरु कर दी । नवाब मंसूर अली खान ने हनुमान जी के मंदिर हनुमानगढ़ी का जीर्णोद्धार करवाया और एक शासकीय आज्ञा ताम्रपत्र पर जारी की । इस आज्ञा के अनुसार कोई भी हनुमानगढ़ी और अयोध्या पर शासन नहीं करेगा और हनुमानगढ़ी के चढ़ावे पर कोई भी कर नहीं लिया जाएगा।